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१३० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
अद्वितीय विचरने का कारण अनुमानत: परिस्थिति रही होगी । अन्यथा स्वेच्छया एकाकी विचरण शास्त्र द्वारा निषिद्ध है ।
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ऐसा लगता है कि अन्य मुनिराजों का देहावसान हो गया होगा और कोई योग्य दीक्षार्थी उपलब्ध नहीं हुआ होगा । तभी वे एकाकी रहे होंगे ।
एकाकी रहने की स्थिति में अधिकतर बेलगाम घोड़े की तरह साधक का पतन होता देखा गया है। किन्तु श्री रोड़जी स्वामी के लिये यह पद्धति सत्य सिद्ध नहीं हो सकी । स्वामीजी एकाकी रहकर भी उत्कृष्ट संयम की साधना में प्रतिपल रत रहे । शास्त्रोक्त "एगओ वा परिसागओ वा" नामक उक्ति आपके लिये अवश्य चरितार्थ हो गई । अनेक में और एक में आपका समान संयमोत्कर्ष बना रहा ।
श्री नृसिंहदासजी महाराज रचित ढाल देखने से ज्ञात होता है कि स्वामीजी को ध्यान का सबसे बड़ा सम्बल था । एकान्त आपका प्रिय स्थान था । प्रायः नगर और बस्ती से दूर एकान्त में स्वामीजी घण्टों ध्यान साधना किया करते थे । भयंकर सर्दी और गर्मी में भी यह क्रम नहीं टूटता ।
प्रातः ही नहीं, मध्यान्ह और रात्रि में भी ध्यान साधना चलती रहती ।
कहते हैं, रोड़जी स्वामी राज करेड़ा के पास कालाजी का स्थान है। उसके आस-पास भी ध्यान किया करते । वहाँ उनकी आँखें जो लगभग अन्धापन से ग्रस्त हो चुकी थीं, खुल गईं, ऐसा ढाल से ज्ञात होता है । "
रायपुर के पास घणां की वाली को भी स्वामीजी ने ध्यान से पावन किया ।
एक जगह स्वामीजी ध्यानस्थ थे। वहीं एक भयंकर नाग निकल आया । वह पाँवों में लिपट गया। फिर भी तपस्वीजी अडिग रहे । कहते हैं, नाग ने स्वामीजी के चारों तरफ फिरकर परिक्रमा, वन्दना, अभ्यर्थना की और सभी के देखते हुए यथास्थान चला गया । २
आत्म-साधना के समर क्षेत्र में उतरे सेनानी की तरह श्री रोड़जी स्वामी अपनी साधना के प्रति निरन्तर जागरूक रहने वाली अनुपम विभूति थे। एकक्षण के लिये भी उन्हें संयम शैथिल्य स्वीकार नहीं था ।
राजकरेड़ा के राजाजी जानते थे कि तपस्वीजी की दृष्टि (नजर) में ह्रास हो गया। उन्होंने अपने यहाँ के काजल के प्रयोग का आग्रह किया। एक दिन तपस्वीजी राजमहलों में गये। नौकर लोग काजल देने लगे । मर्यादानुसार महाराज ने पूछा कि काजल सूजता (निर्दोष) है ? एक नौकर ने कहा महाराज ! सारी रात आँखें फोड़ते हो गई और आप कहते हो सूजता है ? नौकर के इतना कहते ही तपस्वीजी जान गये कि काजल मेरे लिये रातों रात तैयार किया गया । यह मेरे लिये निर्दोष नहीं है । उन्होंने उसे तत्काल त्याग दिया । 3
मूर्तिमन्त महानता के कुछ अद्भुत चित्र
आंखें खुल गई
सदोष समझकर तपस्वीजी ने राजाजी का काजल नहीं लिया था और अपने स्थान पर पहुंच कर वे ध्यान के लिए एकान्त विपिन में चले गये ।
謝弱雞湯口
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१. शहर सूं स्वामी
तेलो कर स्वामी २. आतापना लेवे
पधारियाजी गया विषम उजाड़ | विराजिया वांरी आँख्या खुली तत्काल || स्वामी रोड़जी सिला उपर जाय । सर्प निकल्यो तिण अवसरे वो तो कालो डाटक नाग ॥ प्रक्रमा दीनी तिणं अवसरे जी राजा वासग नाग । पगां बीच ऊभो रह्यो उ तो ऊभो करे अरदास || ३. राजाजी जब यूँ कह्यो स्वामी काजल लो महाराज ।
एक दिवस गढ़ पधारज्यो म्हारा सफल करो काज ॥ स्वामी तो मन में विचारियोजी सूजतो काजल नांय । यो तो काजल लेणो नहीं म्हारे दोष लागे वरतां मांय ॥
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