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वीर भूमि मेवाड़ में जैन संतों की एक महान १ परम्परा लगभग चार सौ वर्ष से चली आ रही है। इस संत परम्परा ने न केवल मेवाड़ की धार्मिकता को उजागर किया, किन्तु वहाँ के लोक-जीवन को । भी, सेवा, समर्पण, त्याग और राष्ट्र-निर्माण के क्षेत्र में सदा प्रेरित किया है। मेवाड़ में स्थानकवासी १ श्रमणों की इस गरिमामयी परम्परा के अनेक दीप्तिमान-नक्षत्र संतों का ऐतिहासिक परिचय यहाँ प्रस्तुत ।
है-ग्रन्थ के प्रधान सम्पादक श्री सौभाग्य मुनि । S 'कुमुद' की प्रवाहमयी-लेखिनी से। anmo--------------------------------------
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पुण्या JITATIL
मेवाड़ सम्प्रदाय के ज्योतिर्मय नक्षत्र
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उत्सानुबन्ध-श्रमणेश भगवान महावीर द्वारा पुनरुद्धरित श्रमण परम्परा स्वरूप स्रोतस्विनी ने सहस्र धार बनकर-लगभग सम्पूर्ण आर्यावर्त को अपने तत्त्व नीर से सींचा।
___ भगवान महावीर के बाद गणधर एवं स्थविरों की एक सुदीर्घ सशक्त परम्परा लगभग एक हजार वर्ष तक चली किन्तु उसके तुरन्त बाद ह्रास का एक अध्याय भी प्रारम्भ हुआ। कुछ समय वह भी चला अवश्य किन्तु साथ ही, क्रियोद्धार की एक नयी लहर दे गया।
क्रियोद्धारस्वरूप नव युग के प्रमुख प्रस्तोताओं में क्रांतिकारी वीर लोंका शाह, पूज्य श्री लव जी ऋषि, पूज्य श्री जीवराज जी महाराज, पूज्य श्री धर्मसिंह जी, पूज्य श्री हरजी राजजी, पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज गिने जाते हैं।
भगवान महावीर और उनके बाद पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज तक का ऐतिहासिक पर्यवेक्षण पाठक इसी ग्रन्थ के इतिहास एवं परम्परा खण्ड में पढ़ सकते हैं। एक अप्रिय आवरण
पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज के भारत विश्रु त निन्याणवें शिष्यों में से पूज्य श्री छोटे पृथ्वीराज जी महाराज पांचवें या छठे शिष्य थे।
पूज्य श्री पृथ्वीराज जी महाराज (छोटे) पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज के ही शिष्य थे ऐसा, कई प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है। २ १ पूज्य श्री छोटा पृथ्वीचन्द जी महाराज
--आचार्य चरितावली, पृ० १४८ २ ६५, धर्मदास जी, ६६, प्रथ्वीराज जी (छोटी पट्टावली)
(ख) धर्मदास जी ॥१०॥ प्रथ्वीराज जी (बड़ी पट्टावली)
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