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________________ मेवाड़ में जैन धर्म की प्राचीनता | १०७ और राजकुमार चुँडा ने इनका स्वागत किया था। इसके बाद श्रेष्ठि नीम्बा द्वारा प्रार्थना करने पर आचार्य सोम सुन्दर सूरि यहाँ आये थे । उस समय दीक्षा महोत्सव किया एवं भुवनसुन्दर को वाचक की उपाधि दी गई । यहाँ सहणपाल नामक श्रेष्ठि बहुत ही प्रसिद्ध हुआ है । यह महाराणा मोकल और कुंमा के समय तक मंत्री था । इसकी माता मेलादेवी बड़ी प्रसिद्ध श्राविका थी जिसने कई ग्रन्थ लिखाये थे । ये खरतरगच्छ के श्रावक थे । इस परिवार का सबसे प्राचीनतम उल्लेख वि.सं. १४३१ का करेड़ा जैन मन्दिर का विज्ञप्ति लेख है । इस लेख के अनुसार बहाँ बड़ा प्रतिष्ठा महोत्सव किया गया था । उक्त विज्ञप्ति की प्रतिलिपि वि०सं० १४६६ में मेरुनन्दन उपाध्याय द्वारा लिखी हुई मिली है। इसी मेरुनन्दन उपाध्याय की मूर्ति १४६९ में मेलादेवी ने बनवाई थी जिसकी प्रतिष्ठा जिनवर्द्धन सूरि से कराई थी। जिन वर्द्धन सूरि की प्रतिमा वि०सं० १४७६ में उक्त परिवार ने दोलवाद्य में स्थापित कराई थी जिसकी प्रतिष्ठा जिनचन्द्र सूरि से कराई थी । वि०सं० १४८६ में संदेह देलवाड़ा नामक ग्रन्थ भी इस परिवार ने लिखवाया था । वि०सं० १४९१ में आवश्यक वृद्ध वृत्ति ग्रन्थ लिखवाया था । वि०सं० १४९१ के देलवाड़ा के यति जी के लेख के अनुसार धर्मचिन्तमणि पूजा के निमित्त १४ टके दाम देने का उल्लेख है । सहणपाल की बहिन खीमाई का विवाह श्रेष्ठि वीसल के साथ हुआ था। यह ईदर का रहने वाला था । सोम सौभाग्य काव्य और गुरु गुण रत्नाकर काव्यों में इसके सुसराल पक्ष का विस्तार से उल्लेख मिलता है । वीसल का पिता वत्सराज था जो ईदर के राजा रणमल का मन्त्री था। इसके ४ पुत्र थे (१) गोविन्द (२) बीस (३) अरसिंह और (४) हीरा गोविन्द ने सोमसुन्दर सूरि आचार्य के निदेशन में संघ निकाला था । वीसल स्थायी रूप से महाराजा लाखा के कहने पर मेवाड़ में ही रहने लग गया था । यहाँ का पिछोलिया परिवार बड़ा प्रसिद्ध था । इनके वि०सं० १४९३ और १५०३ के शिलालेख मिले हैं। पं० लक्ष्मणसिंह भी यहीं हुए थे । यहाँ कई ग्रन्थ लिखे गये थे । प्रसिद्ध " सुपासनाह चरियं" वि०सं० १४५० में महाराणा मोकल के राज्य में यही पूर्ण हुआ था जिसमें पश्चिमी चित्र शैली के कई उत्कृष्ट चित्र है । करहेड़ा मेवाड़ के प्राचीन जैन तीर्थों में से हैं। यहाँ की एक मूर्ति पर वि०सं० १०३६ का का शिलालेख है जिसमें सडेर गच्छ के यशोभद्रसूरि के शिष्ठ श्यामाचार्य का उल्लेख है । यशोभद्र का उल्लेख वि०सं० ९६६ के एक संदर्भ में पाली नगर में हुआ है। करेड़ा के कई मूर्तियों के लेख मिले हैं जो १३वीं से १४वीं शताब्दी के हैं । इस विशालकाय मन्दिर की बड़ी मान्यता मध्यकालीन साहित्य में रही है। श्रेष्ठि रामदेव नवलखाने वि०सं० १४३१ में खरतरगच्छ के आचार्य जिनोदय सूरि से कराया था । इस समय दीक्षा महोत्सव भी कराया गया । इसमें कई अन्य परिवार की लड़कियां और लड़कों को दीक्षा दी गई । मन्दिर का जीर्णोद्धार रामदेव मन्त्री द्वारा कराया गया । और प्रतिष्ठा महोत्सव भी उसी समय कराया गया। इसी समय लिखा विज्ञप्ति लेख में इसका विस्तार से उल्लेख है । इसी मन्दिर में वि० सं० १५०६ में महाराणा कुंभा के शासनकाल में भी कई मूर्तियां स्थापित कराई गईं । उदयपुर नगर में संभवत: कुछ मन्दिर इस नगर की स्थापना के पूर्व के रहे होंगे। आहड़ एक सुसम्पन्न नगर था। यहां के जैन मन्दिरों में लगे लेखों से पता चलता है कि ये मन्दिर संभवत: प्रारम्भ में १०वीं शताब्दी के आसपास बने होंगे । महाराणा सांगा और रतनसिंह के समय यहां के जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ । आहड के दिगम्बर जैन मन्दिर के शिलालेख और मीलवाडे के एक मन्दिर में रखी के लेख के अनुसार उस समय बड़ा प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ । महाराणा जगतसिंह के समय उदयपुर नगर में कई जैन मन्दिर बने । महाराणा राजसिंह के समय बड़े बाजार का दिगम्बर जैन मन्दिर बना । चौगान का सुप्रसिद्ध मन्दिर महाराणा अरिसिंह के समय बना था। मेवाड़ में जैन श्वेताम्बर श्रेष्ठि दीर्घकाल से शासन तन्त्र में सक्रिय भाग लेते आ रहे थे । अतएव उनके प्रभाव से कई मन्दिर बनाये जाते रहे हैं । सबसे उल्लेखनीय घटना मन्दिर की पूजा के विरोध के रूप में प्रकट बाईस सम्प्रदाय है । मेवाड़ में इसका उल्लेखनीय प्रचार भामाशाह के परिवार द्वारा कराया गया था। इसका इतना अधिक प्रभाव हुआ है कि केन्द्रीय मेवाड़ में आज मन्दिर मानने वाले अल्प मात्रा में रह गये । इसी सम्प्रदाय से पृथक होकर आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ की स्थापना मेवाड़ में राजनगर नामक स्थान से की थी । वर्तमान में इन दोनों सम्प्रदायों का यहां बड़ा प्रभाव है । Lady hai use as pul * pat 000000000000 000000000000 40000DDDDE
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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