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( ११ )
प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ भी एक ऐसी विलक्षणता का मूर्त स्वरूप है जिसके पीछे अमूर्त चेतना का परम रमणीय रूप सक्रिय है ।
श्रद्धेय अभिनन्दनीय हो जाता है किन्तु क्यों ? क्योंकि वह श्रद्धेय है ।
श्रद्धा जिसे ग्रहण करती है वह अवश्य आकर्षक होता है ।
मन की गुणात्मक योग्यता ही अपने से अधिक सौन्दर्यात्मक विशेषताओं का अंकन कर श्रद्धेय की स्थापना
कर पाती है।
यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि ऐसा मेरे मन ने किया ।
व्यक्तिशः ऐसा अनेक बार होता है, किन्तु यही क्रम एक से अनेक तक व्यापक हो उभरने लगता है तो वह श्रद्धेय व्यक्तित्व सार्वजनिक अभिनन्दन का पात्र बन जाता है ।
सूक्ष्मतत्त्व की सार्वजनिक अभिव्यक्ति है, जो अन्तः की तरंगायमान
समारोह या समूहगत अभिनन्दन उस तरल स्पन्दनाओं पर संचरण विचरण करता है ।
अभिनन्दन क्यों ?
अभिनन्दन क्यों ? यह एक प्रश्न हैं। जीवन की सर्जनात्मक ऊर्जा की किसी भी स्फुरणा पर "क्यों" तो आकर खड़ा हो ही सकता है और यह भी सत्य है कि "क्यों" कहीं भी अनर्थक नहीं होता; यहाँ भी नहीं है ।
“क्यों” अपने आपमें एक समीकरण है, किन्तु उसका समाधान कभी-कभी बड़ा विकट हो जाया करता है । कारण स्पष्ट है । 'क्यों' धनात्मक नहीं होकर ऋणात्मक है। प्रश्न अपने आप में ऋण स्वरूप होकर भी उसका समाधान धन में है ।
धन यौगिक प्रक्रिया है। जुड़कर जो कुछ बन जाता है वह समाधान होता है ।
एक नहीं, अनेक मन किसी श्रद्धय से श्रद्धात्मक तादात्म्य स्थापित कर जी रहे हों और वे यौगिक हो ( जुड़कर ) अभिव्यक्ति देदे, तो, वह सार्वजनिक अभिनन्दन बन जाता है ।
अभिनन्दन को कभी-कभी सार्वजनीनता देनी पड़ती है। विभिन्न फूलों को एक धागे में डालकर माला रचने की तरह । श्रद्धा को व्यापक रूप देने पर उसका घनत्व अपनी सघनता की स्पष्ट प्रतीति कराता है । और अश्रद्धा पर श्रद्धा की विजय का उद्घोष भी करता है ।
वर्तमान लोक-जीवन के ह्रासोन्मुखी परिणमन के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु एक प्रबलतम कारण अन्याय का आदर भी स्पष्ट है । अनय-सम्मान ने भौतिक आग्रहों को यों दबा दिया है कि आज उसके नीचे शील-सौजन्य, नीति धर्म और राष्ट्रीयता आदि सभी सिसक रहे हैं ।
अनय-सम्मान ने सम्पूर्ण मानवता को विश्वयुद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है, ऐसा लगता है मानों लपटें उठने ही वाली हैं और विश्व स्वाहा: का ग्रास होने को है, वारण असम्भव लगता है फिर भी प्रयास आवश्यक है । अभी समय है, सब कुछ बचा लेने का ।
यदि विश्व चेतना में एक नई लहर आ जाए "अनय का प्रतिकार और नय का सम्मान । भोग का अनादर त्याग का आदर और प्रतिष्ठा ।"
सम्मान उन वास्तविकताओं का जो विश्व चेतना के दीप को स्नेह से पूरती है ।
सम्मान उन स्फुरणाओं का, जो अन्तः के किसी कोने से प्रस्फुटित होकर समस्त विश्व-जीवन को अपने से
आप्लावित करदे |
सम्मान उन कृतियों का, जिनसे मानवता का सौन्दर्य समलंकृत होता है ।
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