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________________ १४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० propD AMAND ONA TITET भाद्रशुक्ला चतुर्थी को गणेश जी के लड्डू तथा चौथमाता को पीडियाँ चढ़ाकर दीवाल पर सिन्दूर की चौथ मांड़ी जाती हैं । ओंकार अष्टमी को कुमारिकाएँ मनवांछित वर प्राप्ति हेतु नीर तथा ओंकार देव का व्रत रखती हैं। यह लगातार आठ वर्ष तक किया जाता है। इन्हीं दिनों श्राद्धपक्ष में बालिकाएँ पूरे पखवाड़े प्रतिदिन संध्या को गोबर की नाना माँति की सांझी की परिकल्पनाएं बनाकर उन्हें विविध फूलों से सजाती-सिंगारती हैं, प्रति संध्या को संझ्यामाता की आरती कर उनकी पूजा करती हैं और नाना प्रकार के संझ्या गीत गाती हैं । देवझुलणी एकादशी को प्रत्येक मन्दिर से देव जुलूस-रामरेवाड़ी निकाली जाती है । अनन्त चतुर्दशी को खीर-कजाकड़े बनाकर व्रत किया जाता है । कार्तिक कृष्णा चतुर्थी को करवाचौथ का व्रत कर गेरु का थापा बनाया जाता है। दीवाली के दूसरे दिन खेंकरे को गोबर के गोवर्द्धन जी बनाकर देहली पर उनकी पूजा की जाती है । आमला ग्यारस को इमली की पूजा, तुलसा ग्यारस को तुलसी की पूजा का विधान भी बड़ा मांगलिक माना गया है। तुलसा की पूजा के समय दालभात का जीमण, बैंकूठ का वास, सीताजीसा चालचलावा और राम लछमण की खांद प्राप्त करने की वांछा की जाती है । ___ कार्तिक का पूरा महीना, क्या औरतें और क्या पुरुष, नहाते हैं । प्रात: उठते ही सरोवर अथवा नदी किनारे नहा-धोकर भक्ति-धार्मिक गीतों से सारा समुदाय भक्तिमय हो उठता है। प्रतिदिन कही जाने वाली कार्तिक कहानियाँ सद् आचरण, सद् विचार, सद् गृहस्थ और सद् जीवन-मरण के विविध घटना-प्रसंगों से पूरित होती हैं । ये सभी धार्मिक कहानियाँ देवी-देवताओं तथा उन महापुरुषों से सम्बन्धित होती हैं जो हमारे भारतीय सांस्कृतिक जीवन में एक आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं । इन कहानियों के अतिरिक्त अनेक कहानियाँ उन साधारण से साधारण सामाजिक-पारिवारिक जीवन की घटनाओं को उच्चरित करती हैं जो हमारे प्रतिदिन के जीवन की मुख्य घटक के रूप में रहती हैं सास-बहू, पति-पत्नी, अड़ोस-पड़ोस, सगे-सम्बन्धी आदि को लेकर जो लड़ाई-झगड़े आये दिन छोटे-छोटे भारत खड़े करते हैं, उनके कुपरिणामों को लेकर उस नारकीय जीवन को कैसे सुखद वातावरण दिया जा सकता है, इसका प्रायोगिक परिणाम इनमें निहित रहता है ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना आत्म परीक्षण करता हुआ स्वयं अपने को खोजे और यदि कहीं गलत कुछ किया जा रहा हो तो उसे त्याग कर स्वयं सही मार्ग का अनुसरण करता हुआ अन्यों को सुपथ दिखाये और एक आदर्श जीवन जीये। व्रत करना अपने आप में आत्म-संयम का सूचक है। आत्मा को संयमित करने वाला कभी भटकता नहीं, भूलता नहीं, वह स्वयं प्रकाशमान होता है और अन्यों को भी प्रकाशित करता है व्रत, कथाओं और थापों के चित्रांकनों से व्रतार्थी स्वयं अपने इष्टफल की प्राप्ति हुआ देखा जाता है ऐसा मन कभी भी उच्छ खल और अलटप्पू नहीं हो सकता इन व्रतानुष्ठानों से चरित्र को बल मिलता है, आत्मा अनुशासित होती है, शरीर सरल, सौम्य और जीवन सात्विक और सदाचारी बनता है इनका असर सुगन्ध की तरह फैलता, फलता हुआ प्रत्येक मनुज को मानवीयता के उज्ज्वल पक्ष का साक्षात्कार देता है । धर्म, पुण्य, दया, करुणा, अहिंसा, सत्य जैसे भावों का प्रसारण ही इनका मुख्य ध्येय रहा है जो हमारी विराट् परम्पराओं के सुदृढ़ पायों की तरह गतिमान निश्चल हैं। (ख) लोकनृत्य नाट्यों में धार्मिकता के स्वर धार्मिक त्यौहारों, अनुष्ठानों तथा अन्यान्य अवसरों पर नृत्यों, गीतनृत्यों, नाट्यों तथा नृत्य-नाट्यों का प्रदर्शन सामूहिक उल्लास तथा आराध्य के प्रति श्रद्धाभाव प्रगट करने के सुख-भाव रहे हैं माता शीतला की पूजाकर औरतें उसे रिझाने-प्रसन्न करने के लिए उसके सामने नृत्य करती है। माता गणगौर के सामने भी इसी प्रकार सरोवर के किनारे घूमर गीतों के साथ बड़े भावपूर्ण नृत्य करती हैं, आदिवासियों के सारे ही नृत्य धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ति में किये जाते हैं, भीलों का गवरी नाच अपने समग्र रूप में धार्मिक है । गाँव की खुशहाली, फसल की सुरक्षा तथा व्याधियों से मुक्त होने के लिए सारा भील गाव अपनी देवी गौरज्या की शरण जाकर गवरी लेने की भावना व्यक्त करता है। पूरे सवा महीने तक माता गौरज्या की मान-मनौती में भील लोग गवरी नाचते रहते हैं। इस बीच ये पूर्ण संयमी तथा सादगी का जीवन व्यतीत करते हैं एक समय भोजन करते हैं, हरी साग-सब्जी से परहेज रखते हैं, अरवाणे पाँव रहते हैं, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं । नहाते-धोते नहीं हैं और न अपने घर ही जाते हैं । गवरी का सम्पूर्ण कथानक शिव-पार्वती .. . 900 AO .... Jan Education meme For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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