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________________ ९० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० Umming 6 . . . UITHI मेवाड़ और अजमेर मेवाड़ की सीमा बनाती है। इनके अतिरिक्त माही, गम्भीरी, बेराव, चम्बल, गेजाली, बामानी काल्दी, बेगोन, बाकल, चन्द्रभागा, गोमती तथा कुसुम्बी नदियां स्थानीय महत्त्व की होती हुई भी उल्लेखनीय हैं । प्राकृतिक जलस्रोतों के अतिरिक्त यह सम्पूर्ण प्रदेश कृत्रिम जलाशयों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। ऐसी झीलों में जयसमन्द, राजसमन्द तथा उदयसागर विशेष उल्लेखनीय हैं । विश्व की कृत्रिम झीलों में जयसमन्द को सबसे बड़ा माना जाता है । जलवायु पूर्व में आर्द्र तथा पश्चिम में शुष्क जलवायु के प्रदेशों के मध्य स्थित इस प्रदेश की जलवायु यहाँ के मूलनिवासियों के लिए महत्त्वपूर्ण एवं लाभप्रद है, जबकि विदेशियों के लिए अपेक्षाकृत प्रतिकूल पड़ती है। इस प्रकार यहाँ की जलवायु को अर्ध शुष्क कहा जा सकता है। यहां का औसत तापमान १५° से० ग्रे० से २०° से. ग्रे० तथा सामान्य वार्षिक वर्षा ६० से० मी० तक होती है । जनवरी में सबसे अधिक ठण्डक (उत्तर में ११° से० ग्रे० तथा दक्षिण में १६ से० ग्रे. तापमान) पड़ती है। जबकि मई तथा जून में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है। और कभी-कभी तापमान ४४° से० ग्रे तक पहुंच जाता है। जाड़े के दिनों में कभी-कभी शीत लहरी तथा ग्रीष्म में 'लू' यहाँ की जलवायु के उल्लेखनीय कारक हैं। पूरे देश की भांति यहाँ भी सम्पूर्ण वर्षा का ६०% माग तीन महीनों (जुलाई-सितम्बर) में ही हो जाती है । और यह मात्रा भी, जो मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम की अरब सागर वाली मानसून शाखा से प्राप्त होती है, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व से पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम की तरफ कम होती जाती है। माउन्ट आबू में सबसे अधिक वर्षा होती है। वर्षा की मात्रा एवं दो प्रकार की जलवायु के मध्य में स्थित होने के कारण प्राकृतिक वनस्पति में पर्याय विविधतायें पाई जाती हैं, फलस्वरूप यहाँ के वनों में पतझड़ तथा अर्ध उष्णकटिबन्धीय सदाबहार के मिश्रित वृक्षों की बाहुल्यता है वृक्षों के निरन्तर कटाव, चरागाही तथा चलती-फिरती कृषिक (बलरा कृषि) ने प्राकृतिक वनस्पति को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है । माउन्ट आबू में अब भी वन सम्पदा संरक्षित है। मेवाड़ प्रदेश के वनों में पाये जाने वाले वृक्षों में आम, बबूल, बेर, घाक, गूलर, पीपल, महुआ, नीम, सागौन, बरगद, जामुन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन वृक्षों से गोंद, महुआ, शहद तथा मोम आदि पैदा किए जाते हैं, जंगली जानवरों में चीते, तेन्दुए, सूअर तथा हिरन आदि पाये जाते हैं। इस प्रदेश में मुख्य रूप से लौहमय लाल, मिश्रित लाल और काली मिट्टियाँ पाई जाती हैं । यहाँ की अधिकांश मिट्टियाँ मिट्टी कटाव के अभिशाप से पीड़ित हैं। राजस्थान के खनिज मानचित्र पर इस प्रदेश का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। अरावली क्षेत्र समस्त राजस्थान के लगभग ७५% खनिज उत्पादन करता है। प्रमुख खनिज पदार्थों में लौह अयश, सोप स्टोन, एस्बेस्ट्स, मैंगनीज, अभ्रक, चूना, पत्थर, बेरील, जस्ता, शीशा, चाँदी, तांबा तथा बॉक्साइट आदि पाये जाते हैं । उदयपुर, डूंगरपुर तथा चित्तौड़गढ़ खनिज पदार्थों के उत्पादन के लिये सबसे प्रमुख केन्द्र हैं। धरातलीय बनावट, मिट्टी तथा जलवायु का किसी प्रदेश की कृषि दशा एवं कृषि उत्पादनों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इस प्रदेश का चट्टानी स्वरूप, लाल तथा लौहमय मिट्टी एवं मानसून प्रधान जलवायु मिलकर एक विशेष प्रकार की कृषि विशेषता उत्पन्न करती है। मेवाड़ क्षेत्र में मुख्य रूप से वर्ष में दो (खरीफ एवं रबी) फसलें पैदा की जाती हैं। मक्का मुख्य खाद्यान्न के रूप में लगभग सर्वत्र पैदा किया जाता है। छोटे-मोटे कृत्रिम तालाबों से सिंचाई की सुविधायें प्राप्त होने के कारण गन्ना भी पर्याप्त मात्रा में पैदा किया जाता है। गन्ना चित्तौड़ क्षेत्र की प्रथम श्रेणी की फसल है। खरीफ की फसलों में चावल तथा मूगफली भी पैदा किये जाते हैं। रबी की फसलों में गेहूँ का स्थान महत्त्वपूर्ण है । एक खेत में गेहूँ की एक ही (मानसून परती) फसल पैदा की जाती है । परन्तु सिंचाई संसाधनों (कुएँ, नहरें एवं तालाबों) के विकसित होने के साथ-साथ गेहूँ और भी लोकप्रिय फसल तथा जमीन दो फसली (७% फसली जमीन का) बनती जा रही है। मुख्य रूप से खाद्यान्न ही पैदा करना इस प्रदेश की कृषि की सबसे बड़ी विशेषता है। उपर्युक्त सिंचाई संसाधनों का वितरण स्थल रूप के अनुसार अर्थात् मैदानी भागों में नहरें तथा कुएँ और पठारी भागों में तालाब पाये जाते हैं। इस समय सम्पूर्ण प्रदेश में लघु सिंचाई परियोजनाओं का जाल-सा बिछा हुआ है और प्रदेश की लगभग सभी नदियों के जल के लाभप्रद उपयोग की व्यवस्था की जा रही है। माही योजना इस प्रदेश की सबसे प्रधान परियोजनाओं में से एक है। PLES PAR NEROKAR 000 INEducatioMILAIMERI OPEL SPEISINOM
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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