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संदेश
स्व० निरंजननाथ आचार्य
बी-६, एम. एल. ए. क्वाटर्स, ___ एम. आई. रोड-जयपुर दिनांक २८ अक्टूबर, १९७४
पूज्य गुरुदेव श्रद्धेय श्री अम्बालालजी महाराज साहब के संयमी जीवन के पचास वर्ष सम्पन्न होने के उपलक्ष में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है, इसकी प्रसन्नता है। ___गत चातुर्मास में पूज्य गुरुदेव का कई बार मुझको स्नेहिल और आध्यात्मिक सान्निध्य मिला। उनके व्यक्तित्व में नैतिकता की महक और वर्चस्व में सरलता की सौरभ है। पास बैठने पर सहसा ही शान्ति एवं पावनता की अनुभूति होती रही है। लगता था जैसे थके पथिक को विश्राम सधन आम्रवृक्ष की छांह में मिल गई हो। आप लोग धन्य हैं जिनके हाथों पूज्य गुरुदेव की गरिमा, तेजस्विता, साधना, तप और त्याग को उजागर करने का दायित्व आया है। ___इस शुभावसर पर मैं पूज्य गुरुदेव का अभिनन्दन करता हूँ-विश्वास है कि उनका दीर्घ जीवन संतप्त मानव को मार्गदर्शन करेगा; पूज्य गुरुदेव का सबसे प्रिय इलोक जिससे वे सदा प्रेरणा लेते रहे हैं यहाँ उधृत करता हूँ
"जीवन्तु मे शत्रुगणा सदैव, येषां प्रयत्नेन निराकुलोहम् यदा यदा मां भजते प्रमादस्तदा स्तदा मां प्रतिबोधयन्ति ।"
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भवन्निष्ठ -निरंजननाथ आचार्य
ओंकारलाल बोहरा भूतपूर्व सदस्य-लोकसभा
उदयपुर,
पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज साहब से बाल्यावस्था से ही मेरा घनिष्ठ सम्पर्क रहा है। उनके सद्-सम्पर्क में मैंने सदैव आत्मीय वातावरण की अनुभूति की है। ___ मैं उनके अभिनन्दन के बारे में क्या लिखू , मेरा सारा परिवार ही श्रद्धा और भक्ति के साथ उनके प्रति अनुरक्त है। मैं उनके दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की मंगल कामना करता हूँ। इस अवसर पर मेरा शत-शत अभिनन्दन !
- ओंकारलाल बोहरा
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