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________________ मङ्गल कामना! मानवमुनि, इन्दौर पूज्य आचार्य देव व्याख्यानवाचस्पति श्रीमद्यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी का जो आयोजन किया गया तथा स्मारक ग्रन्थ के प्रकाशन का जो विचार किया गया वह अभिनन्दनीय है। हार्दिक कामना है कि स्मारक ग्रन्थ प्रेरणास्पद तथा नित्य पठनीय है। पूज्य आचार्य देव की सेवा करने का स्वर्ण अवसर इस बालक को भी सुलभ हुआ। खाचरोद में आचार्य-प्रवर श्री मद्विजययतीन्द्र सूरि जी म.सा. की निश्रा में हीरक जयन्ती मनायी गई थी। खाचरोद नगर के इतिहास में वह क्षण स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा जब आध्यात्मिक चिन्तन, समाज-सुधार तथा मानव-कल्याण की भावना संजोये साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएं तथा चतुर्विध श्रीसंघ भारी संख्या में उपस्थित थे। नम्रता की मूर्ति, ऋजुप्रकृति तथा तेजस्वी आचार्य देव के व्याख्यानों का प्रभाव केवल जैन समाज पर ही नहीं वरन् अजैनों पर भी होता है। उनकी वाणी वचनामृत की मधुर वर्षा से मानव हृदय को सराबोर कर देती थी। आपने हजारों अजैन बन्धुओं को व्यसनमुक्त कर मानवकल्याण के लिए प्रेरित किया। जाति तथा सम्प्रदाय से वे काफी ऊंचे उठे हुए थे। अपने व्याख्यान में आपने महावीर स्वामी के अहिंसामय धर्म मार्ग को मानवकल्याण का पथ निरूपित किया। आपने बताया कि वैराग्य, संयम, साधना, त्याग तथा तपस्या का मार्ग वीरों का मार्ग है; कायरों का नहीं। मानव में प्राणिमात्र के प्रति करुणा का भाव होना चाहिए। तभी मानव महामानव बन सकता है। यह उनकी तपस्या का ही प्रभाव था कि जो एक बार आचार्यश्री के दर्शन कर लेता था वह सर्वदा के लिए उन्हीं का हो जाया करता था। 5 युगपुरुष, योगिराज तथा जन-जन के हृदयसम्राट् श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी ने विक्रम सं. १९५४ आषाढ़ वदि २ सोमवार को १४ वर्ष की अवस्था में उन्हें दीक्षा देकर श्रीमद्यतीन्द्रविजय नाम से प्रसिद्ध किया था। महापुरुषों के आशीर्वचन-मात्र से शिष्य से शिष्य महान् बन जाता है। परम् उपकारी साहित्यकार व आगममर्मज्ञ आचार्यशिरोमणि ने अपने साधनामय पुरुषार्थ से त्रिस्तुतिक संघ का गौरव देश-विदेशों में बढ़ाया। पूजनीय आचार्य देव परम आध्यात्मिक होते हुए भी मानववादी समाजसुधारक थे। वे व्यष्टि एवं समष्टि के समन्वय पर बल देने वाले यशस्वी युगपुरुष थे। उन्होंने कहा था कि गुण के बिना रूप व्यर्थ है, नम्रता के बिना विद्या व्यर्थ है, उपयोग के बिना धन व्यर्थ है, साहस के बिना अस्त्र व्यर्थ है भूख के बिना भोजन व्यर्थ है तथा होश के बिना जोश व्यर्थ है। वासना से बढ़कर कोई दुर्भाग्यपूर्ण विषय नहीं है। त्याग, संयम, साधना, वैराग्य तथा सेवा के आदर्शों से बड़ा कोई धर्म नहीं है। उन्होंने कहा था कि 'भावों का जगत् ही सच्चा व अनूठा है। भावचिन्तन नरक, स्वर्ग और मोक्ष तक प्राप्त कराने का निमित्त हो सकता है। वस्तुतः महापुरुषों के विषय में जितना लिखा जाय उतना ही कम है। कबीर के शब्दों में - __'सब धरती कागद करू लेखनि सब वनराय कामकामा सात समद की मसि करूँ गुरु गुन लिखा न जाय।।' जब तक सूरज-चाँद रहेंगे, युग पुरुष का नाम रहेगा। अपने विश्वविख्यात अभिधानराजेन्द्रकोश के प्रणेता आराध्यपाद प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. के श्री मोहन खेडा तीर्थ की राजगढ़ के समीप स्थापना कर गुरुमहिमा में श्रीवृद्धि की। गुरुवर्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर सर्वदा के लिए जन-जन के हृदयों में समा गये। आज जो उनका विश्वास व श्रद्धा से उनका स्मरण करता है, पूजन-अर्चन करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिवर्ष पौष मास में गुरुसप्तमी का विशाल मेला श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेटी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें सुरक्षा हेतु शासन का भी सक्रिय सहयोग मिलता है। जैन समाज के अतिरिक्त हजारों ग्रामीण कृषक तथा आदिवासी परिवार यहाँ दर्शनार्थ ओत हैं। पू. गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्र सूरीश्वर जी म.सा. सर्वदा के लिए अमर हो गये। उनके ग्रन्थ समाज का सर्वदा मार्गदर्शन करते रहेंगे। ऐसे महापुरुष के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन्। उनके विचार जन-जन का पथ प्रशस्त करते रहेंगे ताकि मानव जीवन संस्कारित हो सके तथा दीक्षा शताब्दी वर्ष सार्थक हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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