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• यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथःसन्देश- वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे...
कल्पना आज साकारस्वरुप में
परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. वि.सं. 2012 में राजस्थान में विचरण कर रहे थे जब राजगढ़ के कुछ श्रावकगण राज. जाकर पूज्य गुरुदेव श्री को राजगढ़ जिला धार म.प्र. लाए। वि.सं. 2012 में गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. के देवलोक गमन में 50 वर्ष पूर्ण हो चुके थे। पूज्य आचार्य श्री ने गुरुदेव श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का अर्द्ध शताब्दी महोत्सव श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में आयोजित करने का निश्चय किया।
यह आयोजन काफी विशाल पैमाने पर हुआ था। कहा जाता है कि श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का पूर्नउद्धार ही पूज्य आचार्य श्री ने इस महोत्सव को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ आयोजित कर किया और जहाँ जमीनों पर कपड़े के टेण्ट के भवन थे आज विशाल धर्मशालाओं के रूप में दिखाई दे रही है भवनों की कल्पना कर आचार्य श्री ने टेंट के रूप में बने थे आज साक्षात भवनों के रूप में दिखाई दे रहे हैं। जो उनकी कल्पना थी जो आज साकार रूप में परिणित हो गई।
किया और साथ धार्मिक शिक्षा एवं संस्कार के लिए गुरुकुल की भावना जो हर समय गुरुदेव के हृदय में रहती थी । वह भी हाईस्कूल के साथ श्री मोहनखेड़ी तीर्थ में चल रहा है । ऐसे शिल्पकार के दीक्षा शताब्दी के अवसर पर परम पूज्य ज्योतिषाचार्य मुनिप्रवर श्री जयप्रभविजयजी म.सा. श्रमण के संपादकत्व में परम पूज्य इतिहास वेत्ता व्याख्यान वाचस्पति पिताम्बर विजेता आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूीरश्वरजी म.सा. के दीक्षा शताब्दी वर्ष पर उनकी स्मृति को अक्षुण्ण, चिरस्थाई बनाए रखने हेतु स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है।
स्मारक ग्रंथ प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामना सहित आचार्य श्री को कोटि-कोटि वंदन।
फजीह निवासी कामकारवाहामन्तोष मामा
प्रति,
का सचिव ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण
श्री जैन श्वेताम्बर सोश्यल ग्रुप, राजगढ़ श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ NENENENENENEVENENENENENENENENINENEIN2 (47) HINENEWSwaral
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