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________________ यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथःसन्देश-वन्दन कोटि कोटि वन्दनारे..... पुण्य स्मरण हे यतीन्द्रवर ! पुण्य स्मरण, आज तुम्हारा हर्षित। Bा जन्म शताब्दी पर जन गण मन जलज हुआ आकर्षित॥ महावीर के श्रमण धर्म में, तेरा जन्म हुआ था। उनकी दिव्य देशना के सम, तू भी सुखद हआ था। गुरु राजेन्द्र के वरदहस्त ने, तेरा रूप संवारा। मालव के अमिराम अंक में, तूने धर्म पसारा॥ सौम्य मूर्ति गुणववान भाग्य भी, तुझको गोद लिए था। स्वस्थ साधु सन्तुष्ट वंध हो, सबको मोद दिए था॥ तूं अगाध अध्यात्मवाद का रत्नाकर था। अगामा तू अथाह व्यवहारवाद का सीमाधर था॥ीमीरा सत्य-अहिंसा शील अचौर्य, से तुझ में रत्न अपरमित । जो तू जीवित था जगकर जी मूल पथ करने आलोकित॥ हिमाली जैन संस्कृति का जीवित जगती पर सुखद स्रोत था। विश्वबन्धु ! तत्व अन्तरात्मा सचमुत शांति-पोत था।। तब चिह्नों पर चलने उत्सुक, जन-समाज है आया। जिसके डर पर तेरा शासन वर्तमान में छाया॥ तू महान उद्देश्य लिए बढ़ता था पथ में आगे। माशालाका जिससे भौतिक युग में फिर से धार्मिकता जागे॥ काकीची हे यतीन्द्रवर ! पुण्य स्मरण, बाग तुम्हारा वर्धित। प्रति, दया क्षमा ऋजुता -शुचिता के श्वेत पुष्प सब अर्पित॥ ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ - लक्ष्मीचन्द्र सरोज (एम.ए.बी.एड.) 22 बजाजखानाजावरा श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ RESERERSENYRYNENE NYRESY SYNXRYRY RYNYRBR2 (45) RURYNENESYRENYRENESYNXSYENYRYNENESEX प्रधान सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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