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- यतीन्दमूरिस्मारक - इतिहासऔर महावीर की भी अलंकृत मूर्तियाँ है,१० से १५वीं शती के अरिष्टनेमि आचार्यों के उल्लेख मिलते हैं। इसके साथ ही माघनदि बीच तक की।
गुणसेन, वर्धमान काकनन्दी आर्यनन्दी आदि आचार्यों के उल्लेख तामिलनाड में ५३० जैन-शिलालेख मिले हैं जिनसे पता हैं। इनका समय ७-८वीं शती है। ज्ञानसम्बन्धर राजा के शैव चलता है कि यहाँ ८-१०वीं शती के पूर्व जैनधर्म अच्छी स्थिति
बन जाने पर जैनधर्म को अनेक आघात सहना पड़े। यानै मलै, में था। द्वितीय शती ई. पू. से मदराई तिरुनेलवेली. रामानद नागमले, समणमले आदि नगर भी पुरातत्त्व की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण आदि जिलों में जैन अवशेष मिलने लगते हैं। चंद्रगुप्त का संघ तामिलनाडु में ई.पू. तृतीय शती में ही फैल गया था। श्रमण - सातवीं शती के बाद तमिलनाडु में जैनधर्म के लिए कड़ा वेलगोला यात्राकाल में ही संगमकाल में चेर, चोल और पांड्य संघर्ष करना पड़ा है। संत अप्परै ने कांची में और सम्बन्दर ने नरेशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में खूब सहयोग दिया। मदुरै में जैनधर्म के विरोध में तीव्र आन्दोलन चलाया, फिर भी तिरुप्परकुनर और मुत्तुपत्ति रिकार्ड से पता चलता है कि श्रीलंका अज्जनन्दी जैनधर्म का प्रचार-प्रसार करते रहे। आदि से जैन-साधु वहाँ आते रहते थे। प्रथम शती में आर्यनन्दी तिन्नेवेल्लि क्षेत्र में कलगमले में द्वितीय शती ई.प. के और बालचन्द्रदेव ने मदुराई में १२३ वीं शती में जैनधर्म का लेखादि मिलते है। यहाँ की जैनकला देखने लायक है। आगे प्रचार किया। दान और सल्लेखना के आलेख पचासों हैं।
त्रावनकोर क्षेत्र में तिरुच्चरणत्तु मलै पहाड़ी पर जैन-मंदिर है, जो जिनसे जैनधर्म की लोकप्रियता का पता चलता है।
आज वैदिक समुदाय के अधिकार में है। यहाँ की महावीर और मदुरै में तीन प्रकार का जैन पुरातत्त्व मिलता है-(१) पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ आज भी वैदिक देवता के रूप में पूजी जा शिलालेखों सहित जैनगुफाएँ, (२) पाषाण चट्टानों पर उत्कीर्ण रही हैं। नगर कोइलका जैनमंदिर नागराजस्वामी पर भी उन्हीं का
जैन-देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और (३) वत्तेलुत्तु लिपि में लिखे अधिकार है। पार्श्वनाथ महावीर पद्मावती आदि तीर्थंकरों और तमिल लेख। पांड्य राजाओं के शासनकाल में मदुरै एक सशक्त शासनदेवी-देवताओं की मूर्तियाँ मुख्य मण्डल के स्तम्भों पर जैन केन्द्र रहा होगा। तेवरमतथा स्थल पुराण के अनुसार अनैमलै अभी भी उत्कीर्ण हैं। मूलरूप से वस्तुत: यह जैनमंदिर था जो नागमलै और पथुमलै आदि पहाड़ियों पर प्राप्त जैन-पुरातत्त्व इसका यहाँ के लेखों से भी पुष्ट होता है। इनके अतिरिक्त कलुगुमलै, प्रमाण है। अरिट्रपट्टि, मंगलं, मुत्तपट्रि, कोंगर पलियंकुलं, तिरप्परे नागलापुर,कायल, धर्मपुरी, विजयमंगलं,मह कुंजरं, वरिच्चयु, अलगरमलै, करुंगलकुडि, किलुवलजू, विक्किर भी ऐसे हैं, जहाँ जैनमंदिर और मूर्तियाँ भूगर्भ से प्राप्त हुई हैं। मंगलं, मेत्तुपेत्तु (सिद्धरमलइ) आदि स्थल भी उदाहरणीय हैं। कालीकट और पालघाट जिलों में और भी जैनकेन्द्र हैं।
मदुरै के पास तिरुपरकुनर में सरस्वती तीर्थ है, जहाँ पार्श्व गणपतिवत्तम में एक बस्तीमंदिर है केरल-मैसूर रोड पर। एडक्कल । और सपार्श्व की फण सहित संदर मूर्तियाँ हैं। पास ही गुफा के ऊपर बना मंदिर भी जैनमंदिर होना चाहिए। पालघाट में अन्नामलै पहाड़ी है, जिस पर जैन-पुरातत्त्व सामयी प्रचुर परिमाण एक छोटा-सा मंदिर है। इसके अतिरिक्त मृत्तपत्तन और मचलापट्टन में मिलती है। यह स्थान अब ब्राह्मण समुदाय के अधिकार में है। में भी जैन मंदिर हैं। अलातूर में भी एक पुराना मंदिर है, जिसमें यहाँ तीर्थंकर और शासन देवताओं की मूर्तियाँ मिलती हैं और महावीर पर्यकासन में हैं दूसरी मूर्ति पार्श्वनाथ की है, जिस पर लेखों में अज्जनन्दी आदि आचार्यों का उल्लेख है। पास ही तीन फण है, वह कायोत्सर्ग मद्रा अलगरमले पहाडी पर भी जैन-लेख है, जिनमें अज्जनन्दी का
तीसच्चारणटमले में एक संदर गहा मंदिर है जिसमें लगभग उल्लेख है। उसी के पास उत्तमपलैयं मुत्तषत्ति, कोंगर, पुलियंगुल तीस मर्तियाँ उत्कीर्ण है। एक अन्य गुफा का नाम श्रान्तनपाडा किलक्कडि.पेच्छिपल्लं, पोयगैमलै, पंचपाण्डवमलै आदि अनेक है। इन गफाओं को देखने के बाद मंदिरों की संरचना पर ध्यान स्थान हैं, जहाँ जैनपुरातत्त्व सामग्री बहुतायत में मिलती है। यहाँ
जाता है। सिलप्पदिकारम से कुणिवायिलकोंट्टम नामक जैन मंदिर तिरुक्कतम्बले करंदी नामक एक जैनकेन्द्र है। उत्तमपलियम का पता चलता है जिसे हैदरअली ने नष्ट कर दिया था। बिहार भी इसी के अंतर्गत रहा होगा. जहाँ अस्टोपवासी और
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