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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : इतिहास. आदि को छोड़कर) ने न तो स्वयं कोई ग्रन्थ लिखा है और न ही किन्हीं ग्रन्थों की प्रतिलिपि कराई, बल्कि प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में अपनी भूमिका निभाते रहे। धनेश्वरसूरि, भुवनचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि और जगच्चन्द्रसूरि को छोड़कर इस गच्छ में ऐसा कोई प्रभावक आचार्य भी नहीं हुआ, जो श्वेताम्बर श्रमणपरंपरा में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर सकता । ई. सन् की १८ वीं शताब्दी के प्रथम चरण के बाद इस गच्छ से संबद्ध साक्ष्यों के अभाव से यह सुनिश्चित है कि इस समय के बाद इस गच्छ का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया और इस गच्छ के अनुयायी किन्हीं अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गए होंगे। सन्दर्भ १. अगरचन्द्र नाहटा 'जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश' यतीन्द्रसूरि - अभिनंदन - ग्रन्थ (आहोर, १९५८ ई.) पृष्ठ १४७ पर श्री नाहटा द्वारा उद्धृत मुनि बुद्धिसागर का मत। मुनि कान्तिसागर, शत्रुञ्जय वैभव (कुशल संस्थान, जयपुर, १९९० ई.) पृष्ठ २६९ २. तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि - कृत श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण की प्रशस्ति Muni Punyavijay- Catalogue of Palm Leaf Manuscripts in the Shanti Nath Jain Bhandara, Canbay (g.o.s. no. 149 Part two, Baroda, 1966, A.D.) PP 263-265. तपागच्छीय क्षेमकीर्तिसूरिकृत बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि.सं. १३२२ / ई. सन् १२५६ ) की प्रशस्ति । C. D. Dalal - A. Desciptive Catalogue of Manuscripts in the jain Bhandars at pattan (G.O.S. No. LXXVI, Baroda, 1937 A.D.) PP 354-356. तपागच्छीय विभिन्न पट्टावलियों के सन्दर्भ में दृष्टव्य त्रिपुटी महाराज, संपा. पट्टावलीसमुच्चय, भाग-१-२ (चारित्र-स्मारक, ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क, २२ एवं ४४, अहमदाबाद १९३३ - १९५० ई.) मुनि जिनविजय, संपा., विविधगच्छीयपट्टावली - संग्रह (सिंधी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५३, बंबई १९६१ ई.) Jain Education International For Private मुनि कल्याणविजयगणि, संपा. श्री पट्टावलीपरागसंग्रह (कल्याणविजय शास्त्रसंग्रह- समिति, जालोर, ई. सन् १९६६ ) ३. A. P. Shah Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Muni Shri Punyavijayajis Collection (L.D. Series No. 2, Ahamedabad, 1963 A.D.) Part 1 P.P. 131, No. 2554 ४. Ibid, Part 1, P. 93, No. 1464 ५. Ibid, Part 1, P.83, No. 1018 ६. द्रष्टव्य, पादटिप्पणी, क्रमांक २ ७. त्रिपुटी महाराज, जैनतीर्थोनो इतिहास, (श्री चारित्र - स्मारक ग्रन्थमाला, अहमदाबाद, १९४९ ई.) पृष्ठ ३८५ और आगे. ८. G. C. Choudhary, Political History of Northern In dia (Sohanlal Jaindharma Pracharak Samiti, Amritsar, 1954 A.D.) P.P. 172-173. ९. पूरनचन्द्र नाहर, सम्पा. जैनलेखसंग्रह, भाग - २ (कलकत्ता १९२७ ई.), लेखाङ्क १९४२ तथा ५० विजयधर्मसूरि, संग्राहक- प्राचीनलेखसंग्रह ( यशोविजय जैन ग्रंथमाला, भावनगर, १९२९ ई.) लेखाङ्क ३९. १०. मुनि जयन्तविजय, संपा. अर्बुद प्राचीन जैन, लेख-संदोह (विजयधर्मसूरि-जैन-ग्रंथमाला, पुष्प ४०, छोटा सराफा, उज्जैन वि.सं. १९९४) लेखाङ्क ५३५. ११. त्रिपुटी महाराज - जैन तीर्थोंनों इतिहास, पृष्ठ ३८५ और आगे " १२. मुनि बुद्धिसागरसूरि संपा. जैन धातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग२, (श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारक मंडल, पादरा, ई. सन् १९२४) लेखाङ्क ७५४ १३. आचार्य विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, लेखाङ्क ४२८-४२९ १४. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५७-७१. १५. मुनि जिनविजय-संपा., प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग-२, (जैन आत्मानंद, सभा, भावनगर, १९२१ ई.) लेखाङ्क ३९८. पूरनचंद नाहर, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखाङ्क ८३०. १६. द्रष्टव्य, पादटिप्पणी, क्र. ५. Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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