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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ : सन्देश - वन्दन
कोटि कोटि वन्दना रे...
व्यसन मुक्त समाज के समर्थक
15 प्रत्येक चमकदार वस्तु सोना नहीं होती है किन्तु व्यक्ति चमकीली वस्तु को देखकर उसकी और आकर्षित हो ही जाती है। इसी प्रकार व्यक्ति बुराइयों की ओर भी स्वाभाविक रूप से आकर्षित होता है जैसा जुआ एक बहुत बड़ी बुराई एवं व्यसन है, किन्तु व्यक्ति का सोच यह रहता है कि उसके दाव लगाते ही उसे लगाए गए धन से कई गुना धन मिल जावेगा और वह इसी आशय में दावा जाता है। उसे धन मिलता तो नहीं है वरन् वह दरिद्र हो जाता है।
समाज में उसे अपमानित अलग से होना पड़ता है। इसी प्रकार अन्य व्यवसन जैसे आखेट, वेश्यागमन, मद्यपान परदारा गमन आदि भी व्यक्ति के लिए विनाश के कारण ही है। समाज में सभी व्यक्ति व्यसनमुक्त नहीं रहते। अनेक व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो किसी न किसी व्यवसन में लिप्त रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों का जीवन और उनका परिवार सदैव दुःख ही रहता है।
कीकीक
प्रातः स्मरणीय बाल ब्रह्मचारी आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. समाज में व्याप्त इस बुराई से परिचित थे यही कारण था कि वे समय-समय पर अपने प्रवचनों के माध्यम से चर्चाओं में व्यसनमुक्त जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान किया करते थे व उनके उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक व्यक्तियों ने व्यसनों का त्याग कर सादा जीवन जीना शुरू कर दिया था।
जैन धर्मावलम्बी ही नहीं मारवाड़ के कुछ ठाकुरों ने भी श्रद्धेय आचार्यश्री के उपदेशों से प्रभावित होकर आजीवन शिकार नहीं खेलने और मद्यपान नहीं करने का नियम ग्रहण किया था। ऐसे उदाहरणों से आचार्य श्री के सर्वव्यापी प्रभाव की जानकारी मिलती है। ऐसे महामहिम आचार्य श्री की स्मृति में एक श्रीमद् यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन एक सच्ची श्रद्धांजलि है। मैं इस आयोजन की सफलता की अन्तर्मन से कामना करते हुए आचार्यश्री के चरणों में भावभरी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
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प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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प्रार्थी
राजेन्द्रकुमारधाड़ीवाल, रतलाम
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