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________________ - यतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार. के लिए उन्होंने किसी प्रयोग-शाला की स्थापना की भी बात शरीर-विद्युत उत्पन्न करते हैं। यह धनात्मक होती है और तंत्र में नहीं की है। विद्यमान ऋणात्मक तत्त्वों को नष्ट कर प्रशस्तता प्रदान करती यह गायत्री मंत्र दिव्य शक्ति के अस्तित्व पर आधारित जो मनोवैज्ञानिकत: सामान्य जन को प्रभावित करता है। इसके - मंत्र ध्वनि-ध्वनि ऊर्जा (प्राण, मन) - शरीर विद्युत् नकारात्मकता नाश-प्रशस्तता। विपर्यास में, णमोकार मंत्र अधिक वैज्ञानिक होने पर भी जैनों इनकी उच्चारणशक्ति से आकाश में भी, वीचि-तरंग न्याय के क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ पाया है। से, कम्पन उत्पन्न होते हैं, जहाँ इनका विस्तार एवं सूक्ष्मकरण त्रिशरण मन्त्र - जैनों और हिन्दुओं के समान बौद्ध धर्म होता है। इन ऊर्जीकृत कम्पनों का पुंज अपने उद्भव केन्द्र पर के अनुयायियों का भी एक मंत्र है, जिसेत्रिशरण-मंत्र कहते हैं - लौटने तक पर्याप्त शक्तिशाली हो जाता है और यही शक्ति बुद्धं शरणं गच्छामि मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ। मंत्र-साधक की शक्ति कहलाती है। हमारे शरीरतंत्र में इस शक्ति के अवशोषण, संग्रहण एवं संचारण की क्षमता होती है। यह धम्मं शरणं गच्छामि मैं बुद्ध के उपदेशित धर्म की शरण लेता हूँ।। शरीरतंत्र की विद्युत् ऊर्जा को प्रवलित करती है। यह शक्ति संघशरणं गच्छामि मैंबुद्ध-संघ की शरण लेता हूँ। मनुष्य में भूकम्प-सा ला देती है। इस शक्ति के अनेक रूप यह भी व्यक्ति-विशेषित भक्तिवादी मंत्र है। बौद्धों की सम्भव हैं। योगिजन अपनी दृष्टि, मंत्रोच्चारण, स्पर्श तथा विचारों विशिष्ट विपश्यना ध्यान-पद्धति भी है, जिसमें इस मंत्र का पारायण के माध्यम से इस शक्ति को दूसरों के हिताहित-सम्पादन में होता है। बुद्ध को सामान्यतः यथार्थवादी एवं व्यवहारवादी माना संचारित करते हैं। जाता है और उसमें भी पुरुषार्थ को महत्त्व दिया गया है, फिर भी . ऊर्जा के कम्पनों के अनेक रूप होते हैं - (१) विद्यत. यह व्यक्ति-आधारित है और मनोवैज्ञानिकतः प्रभावी है। यहाँ (२) प्रकाश और रंग, (३) प्राण, (४) नाडी. (५) ध्वनि आदि। बुद्ध को दिव्यशक्ति-सम्पन्न मान लिया गया है। इसीलिए बुद्ध- इनका सामान्य गण कम्पन होता है। कछ कम्पन स्वैच्छिक होते धर्म भी संसार के अनेक भागों में फैला है और अनुयायियों की हैं और कछ उत्पन्न किए जाते हैं (वचन, यंत्रवादन आदि)। कछ दृष्टि से यह विश्व में तीसरा धर्म माना जाता है, जबकि हिन्दू धर्म सहज ही होते रहते हैं। इन कम्पनों के विषय में भारतीय विद्याओं अब चौथे स्थान पर चला गया है। इस मंत्र में २४ वर्ण हैं, जिनके के 'नादयोग' तंत्र में 'आहत और अनाहत' के रूप में विवरण आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। मिलता है। इसके अनुसार १० प्रकार (मेघ, घंटा, भ्रमरी, तंत्री मन्त्रों की प्रभावकता की व्याख्या आदि) की ध्वनियाँ होती हैं। ये ध्वनि कम्पन अपने विशिष्ट तरंग-दैर्ध्य एवं आवृत्तियों से पहचाने जाते हैं। ये कम्पन हमारे मंत्र विशिष्ट ध्वनियों एवं वर्गों के समूह हैं। इनके उच्चारण कान के माध्यम से मस्तिष्कतंत्र में जाते हैं, वहाँ से सारे शरीर में से ध्वनि-शक्ति उत्पन्न होती है। बारम्बार उच्चारण से इस फैलकर सारे वातावरण में विसरित होते रहते हैं। ये कम्पन शक्ति में तीव्रता आती है। यह तीव्रता ही अनेक प्रभाव उत्पन्न । हमारी मानसिक एवं विद्युत् ऊर्जा को भी प्रभावित करते हैं - करती है। इसलिए मंत्रों को ध्वनि-शक्ति की लीला-स्थली ही मंत्र के माध्यम से उसे संवर्धित एवं एकदिशी बनाते रहते हैं। इन कहना चाहिए। यह ध्वनि शरीर-तंत्र के अनेक अवयवों, स्वर - कम्पनों की ऊर्जा हमारी प्रसुप्त या कर्म-आवृत्त ऊर्जा को तंत्र एवं मन के कार्यकारी होने पर कण्ठ, तालु आदि में होने उत्तेजित करती है और उसे अभिव्यक्ति करने में सहायक होती वाले विशिष्ट कम्पनों के माध्यम से उत्पन्न होकर अभिव्यक्त __ है। कम्पन-ऊर्जा का प्रहार जितना ही तीव्र होगा, हमारी आंतरिक होती है। अतएव ध्वनि को कम्पन-ऊर्जा भी कहते हैं। जैन ऊर्जा की अभिव्यक्ति भी उतनी ही उन्नतिमुखी होगी। शास्त्रों के अनुसार ध्वनि ऊर्जामंय सूक्ष्म पौद्गलिक कण हैं, जो अपने उच्चारण के समय तीव्रगामी मन और प्राण से संयोग कर प्रत्येक वर्ण की ध्वनि विशिष्ट होती है, अत: उसके कम्पन उनकी ही गति प्राप्त कर और भी शक्ति-सम्पन्न हो जाते हैं और . भी विशिष्ट होते हैं। ये कम्पन ही वर्ण की ऊर्जा को निरूपित मा करते हैं, क्योंकि कम्पन ऊर्जा के समानुपाती होते हैं। यही नहीं, morrordnidroidrodariwariwarsanawardGidad-२०idnirodnirodroidrodwhonloodwidnirdoorsmombrarar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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