SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 699
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ जैन-साधना एवं आचार णमोकार मन्त्र - जैनों में यह मंत्र महामंत्र कहलाता है और इसके जप के प्रभावों से न केवल अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं, अपितु वर्तमान में भी इससे अनेक कथानक जुड़ते रहते हैं। यह मंत्र अर्थतः अनादि है, पर शब्दतः प्रथम द्वितीय शती में उद्घाटित हुआ है। यह खारबेल-युगीन द्विपदी से पंचपदी में विकसित हुआ है। इसके विषय में अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं । ३५ अक्षरों वाला यह मंत्र निम्नांकित है णमो अरिहंताणं आई बो टू एनलाइटेंड्स णमो सिद्धाणं आई बो टू साल्वेटेड्स णमो आयरियाणं आई बो टू मिनिस्टर्स आई बो टू प्रीसेप्टर्स णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं आई बो टू सेन्ट्स आफ आल दी वर्ल्ड धवला टीका के अनुसार, इसका निम्न अर्थ है - मैं लोक के सभी बोधि प्राप्त पूज्य पुरुषों को नमस्कार करता हूँ । मैं लोक के सभी सिद्धि प्राप्त सर्वज्ञों को नमस्कार करता हूँ । मैं लोक के सभी धर्माचार्यों को नमस्कार करता हूँ। मैं लोक के सभी उपाध्यायों (पाठकों) को नमस्कार करता हूँ। लोक के सभी साधुओं (अध्यात्म मार्ग के पथिकों) को नमस्कार करता हूँ। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में पाँच की संख्या का बड़ा महत्त्व था। इसीलिए पंचभूत, पंचप्राण, पंचरंग, पंच आचार, पाँच अणु/महाव्रत, पाँच समिति और पाँच आकृतियाँ स्वीकृत किए गए। इनमें से कुछ को णमोकार मंत्र के विविध पदों से सह-सम्बन्धित किया गया है ( सारणी - १ ) : सारणी - १ : णमोकार मंत्र के पदों के अन्य पंचकों से सह-सम्बन्ध क्र. पद रंग भूत प्राण आकृति प्रभाव १. णमो अरिहंताणं सफेद समान अर्धचन्द्र विनाशक २. णमो सिद्धाणं लाल उदान त्रिकोण संरक्षक ३. णमो आयरियाणं पीला व्यान वर्ग विनाशक ४. णमो उवज्झायाणं नीला वायु प्राण षट्कोण निर्मायक ५. णमो लोए सव्वसाहूणं धूमकाला आकाश अपान वृत विनाशक సోర Jain Education International - जल अग्नि पृथ्वी इस प्रकार इस मंत्र में ऋणात्मक गुणों को नष्ट कर सकारात्मक गुणों के विकास का गुण है। यह स्पष्ट है कि इसमें नकारात्मक गुणों के नाश के प्रतीक तीन पद हैं। इसका अर्थ यह है कि इन गुणों के नाश में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है। नकारात्मक गुणों में राग-द्वेष, मोह, तनाव, व्याधियाँ, पाप आदि माने जाते हैं। सकारात्मक गुण इनके विपरीत और प्रशस्त होते हैं। इस मंत्र की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति या दिव्य शक्ति आधारित नहीं है, यह पुरुषार्थवादी मंत्र है। यह गुण - विशेषित मंत्र है। फलतः यह सार्वदेशिक एवं त्रैकालिक मंत्र है। यह वैज्ञानिक युग के भी अनुरूप है। इस मंत्र का अंग्रेजी अनुवाद भी यहाँ दिया गया है। इसके आधार पर अंग्रेजी के णमोकार मंत्र की साधकता भी विश्लेषित की गई है। गायत्री मन्त्र - जैनों के णमोकार मंत्र के समान हिन्दुओं में गायत्री मंत्र का प्रचलन है। इस मंत्र को मातामंत्र कहा जाता है। यह भक्तिवादी मंत्र है, जिसमें परमात्मा से सद्बुद्धि देने एवं सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना की गई है। मुख्यतः पुनरावृत्ति छोड़कर २४ अक्षरों वाले इस मंत्र में २९ वर्ण हैं, जिनके आधार पर इसकी साधकता विश्लेषित की गई है। यह मंत्र निम्नांकित है ओम् भुर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । इसका अर्थ निम्नलिखित है मैं उस परमात्मा (शिव) को अंतरंग में धारण करता हूँ, जो भू-लोक भुवनलोक एवं स्वर्गलोक में व्याप्त है, जो सूर्य के समान तेजस्वी एवं श्रेष्ठ है और जो देवतास्वरूप है। वह मेरी बुद्धि को सन्मार्ग में लगाए । गायत्री परिवार ने युगनिर्माण योजना के माध्यम से इस मंत्र को अत्यंत लोकप्रियता प्रदान की है। इसको जपने वालों की संख्या ३ करोड़ तक बताई जाती है। इस परिवार का मुख्य कार्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार है, जहाँ मंत्र जप के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। नई पीढ़ी के लिए यह बहुत बड़ा आकर्षण है। एक जैन साधु ने णमोकार मंत्र से सम्बन्धि एक आन्दोलन एवं रतलाम के एक सज्जन ने उसके प्रचार का काम चालू किया था, पर उसकी सफलता के आँकड़े प्रकाशित नहीं हुए हैं। मंत्र जप की प्रक्रिया को वैज्ञानिकतः प्रभावी बनाने ~EGGA mon - For Private Personal Use Only Boforðaforðmfimbri www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy