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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ: सन्देश--वन्दन -
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का वे गुण ग्राहक थेट
हम यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परम श्रद्धेय बाल ब्रह्मचारी व्याख्यान वाचस्पति
आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की दीक्षा शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन होने जा रहा है। निश्चय ही यह स्मारक ग्रंथ श्रद्धेय आचार्य भगवंत की सम्पूर्ण जीवन अंग को प्रस्तुत करे तथा उनके जीवन के अप्रकाशित पृष्ठों को भी उजागर करेगा साथ ही इस स्मृति ग्रंथ में जैन धर्म दर्शन साहित्य कला एवं संस्कृति से संबंधित स्तरीय आलेख भी सम्मिलित किए जाएंगे। आपके द्वारा प्रकाशित होने वाला यह ग्रंथ स्मति ग्रंथों की श्रृंखला नए कीर्तिमान स्थापित करें यही मंगल मनीषा है।
मुझे एक बात स्मरण आती है कि श्रद्धेय आचार्य श्री स्वयं तो विविध विषयों में लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान थे ही वे विद्वानों को भी सम्मान करते थे और आवश्यकता के अनुरूप यथा संभव उनकी सहायता भी करते व करवाते थे। ऐसे विधान आचार्य बहुत कम देखने को मिलते हैं। आचार्यश्री किसी भी विषय पर विद्वानों से चर्चा करते समय उनकी बात को ध्यानपूर्वक न केवल सुनते वरन आवश्यकतानुसार उसके अनुरूप कार्य भी करते थे। वे सच्चे अर्थों में गुण ग्राहक थे।
ऐसे गुण ग्राही आचार्य श्री के पावन चरणों में अपनी ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कोटि-कोटि वंदन
Eकायम
बाबूलाल भंवरलाल अनोखीलाल प्रति,
खिमेसरा - बजाजखाना जावरा ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ SYRENYNONYM RYRYNYNYNXRYRYNERY RYNXNXRX (18) RXNXNXNXNXNXXE
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