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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथःसन्देश-वन्दन
कोटिकोटिवन्दनारे...
किनकि एकता के प्रबल समर्थक इस संसारी मनुष्य छोटी-छोटी बातों का बुरा मान जाते हैं और बैर बांध लेते हैं। परिणामस्वरूप समाज में गुटबाजी हो जाती है। समाज दो या अधिक समूहों में विभक्त हो जाता है। समाज का इस प्रकार अलग-अलग समूहों में विभक्त हो जाना समाज हित में नहीं होता है। जो विज्ञ पुरुष होते हैं वे समय-समय पर समाज के इन विग्रहों को दूर कर एकता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। गृहस्थाश्रम में रहने वाले व्यक्ति आपस में समझाने पर भी नहीं समझते हैं। वे एकता का महत्व जानते हुए भी अपनी बात पर अड़े रहते हैं। ऐसे हटाग्रही लोगों को समझाकर संघ में समाज में एकता स्थापित करनी बड़ी टेड़ी खीर होती है, परंतु जो संघ समाज में एकता स्थापित करनी बड़ी टेडीखीर होती है। परंतु जो संघ समाज में एकता के पक्षधर होते हैं, उनके लिए ऐसे व्यक्तियों को सत्य मार्ग पर लाना कठिन कार्य नहीं होता है। वे अपने प्रयासों से संघ समाज में एकता स्थापित करके ही रहते हैं।
परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. ने देश के विभिन्न भागों में विचरण किया था। अपने विचरणकाल में उनके सामने अनेक समस्याएं भी आती थी, जिनका वे सहज ही निराकरण कर दिया करते थे अनेक स्थानों पर समाज की फुट के उदाहरण भी उनके सामने आए। समाज की इस फुट के कारण समाजहित के अनेक कार्य नहीं हो पा रहे थे। ऐसे समय में आप दोनों पक्षों की बात को बड़ी गंभीरता से सुनते थे और फिर उस पर गहन चिंता कर दूध का दूध और पानी का पानी कर अपना निर्णय देते थे अथवा दोनों पक्षों को अपने सामने बैठाकर इस प्रकार समझाते थे कि दोनों पक्ष प्रसन्नतापूर्वक अपने हठ का त्यागकर आपस में गले मिल जाया करते थे। यह सब उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं निश्पक्षता के गुण के कारण संभव होता था वे स्वयं एकता के प्रबल समर्थक थे। आज जब उनकी स्मृति में एक श्रीमद् यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है तो आनंदद की लहरें उत्पन्न हो रही है। मैं आचार्य श्री के चरणों में नमन करते हुए इस आयोजन की सफलता की हार्दिक मंगल कामना करता हूं। कामना कर
मांगीलाल चौपड़ा प्रति,
अध्यक्ष - खतरगच्छ संघ, रतलाम ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
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