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________________ क्रान्तदर्शी शलाकापुरुष : भगवान् महावीर विद्यावाचस्पति - डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव भिखना पहाड़ी, पटना..... भगवान् महावीर प्रगतिशील वैज्ञानिक चेतना से सम्पन्न अवतार शब्द का प्रयोग न करके जन्मकल्याणक शब्द का क्रान्तदर्शी पुरुष थे। वे ज्ञान,दर्शन और चरित्र के सम्यक्त्व की व्यवहार करती है। इसलिए कि अवतार शब्द में मानवेतर अलौकिक उपलब्धि से संवलित प्रसिद्ध पुरुष होने के कारण धन्यतम तिरेसठ सृष्टि का भाव निहित है, किन्तु मानववादी जैनदृष्टि मनुष्य से इतर शलाकापुरुषों में अन्यतम माने जाते थे। महावीर शलाका पुरुष किसी अलौकिक शक्ति को मूल्य देकर मानव-अस्मिता के थे, इसलिए वे ईर्या (शरीरगति) की विलक्षणता और ऊर्जा अवमूल्यन की पक्षधर नहीं है। (मनोगति) की विचक्षणता से विभूषित थे। वे उत्तम शरीर के ईसा-पूर्व छठी शती (५९९ वर्ष) में चैत्र शक्ला त्रयोदशी धारक थे। उनका शरीर वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन से युक्त की आधी रात को महावीर ने जन्म लिया था। विदेह जनपद की था। अर्थात् उनका शरीरबंध वज्र की तरह अतिशय कठोर, वैशाली में कण्डपर नाम का नगर था, जिसके दो भाग थे। वृषभ की तरह अत्यधिक बलशाली और लौहमय बाण की तरह क्षत्रिय कण्डग्राम और ब्राह्मण कुण्डग्राम। महावीर का जन्म अतिशय सुदृढ़ था। सम्पूर्ण सुलक्षणों से संपन्न उनका शरीरसंस्थान ब्राह्मण कुण्डग्राम से गर्भान्तरण के बाद क्षत्रिय कण्डग्राम में या शारीरिक संघटन समचतुरस्त्र अर्थात् सुडौल था जो अपनी हुआ था। श्रुति-परम्परा यह भी है कि महावीर पहले ब्राह्मणी के श्रेष्ठ तप्त स्वर्ण जैसी चमक से आँखों को चकमका देने वाला था। गर्भ में प्रतिष्ठित हुए थे, किन्तु तीर्थंकरों के क्षत्रिया के गर्भ से यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति के अनुसार महावीर के रूप में गुणों का उत्पन्न होने की परम्परा रही थी, इसलिए महावीर को भी ब्राह्मणी मणिकांचन संयोग हआ था। वे रूप के आगार और गुणों के निधान थे। के गर्भ से निकालकर क्षत्रिया के गर्भ में प्रतिष्ठित किया गया महावीर का चरित्र परम अद्भुत है। वे किसी निश्चित या था। गर्भाहरण की इस घटना को ठाणं (स्थानांगसूत्र) में दस पूर्व परम्परित साध्य की पूर्ति के लिए नहीं जन्मे थे। जन्म लेना आश्चर्यक पद (अच्छेरग पद) में परिगणित किया गया है (द्र. चूँकि संसारचक्र की अनिवार्यता है, इसलिए सामान्य मानव की स्थान. १० सूत्र-१६०)। तरह उन्होंने भी इस अनिवार्यता को मूल्य दिया था। संसार रूप महावीर की माता रानी त्रिशला क्षत्रियाणी थीं और पिता जए को जन्म और मरण रूप दो बैल खींचते हैं। इस संसार का राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय थे। वे दोनों पार्श्वनाथ की परम्परा के दसरा पहल मक्ति है, जहाँ जन्म और मरण दोनों नहीं हैं। मुक्ति श्रमणोपासक थे। रानी त्रिशला वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक अमतत्त्व की साधना का साध्य है। जिस मनुष्य का जैसा विवेक की बहन थी। सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डग्राम के अधिपति थे। होता है, उसका वैसा ही साध्य होता है और वैसी ही साधना भी आचारचला (१५.२०) तथा आवश्यकचर्णि (पूर्वभाग) के होती है। प्रत्येक मनुष्य अपनी योग्यता के अनुकूल अपना साध्य अनुसार महावीर के आदरणीय अग्रज का नाम नन्दिवर्धन था, निर्धारित करता है। महावीर जन्मना ततोऽधिक विवेकी थे। इसलिए जिनका विवाह चेटक की पत्री ज्येष्ठा के साथ हआ था, जो उन्होंने मुक्ति को अपनी अमृतत्त्व-साधना का साध्य निश्चित नन्दिनवर्धन की ममेरी बहन थी। उस समय ममेरे भाई-बहन में किया था विवाह की प्रथित परम्परा को सामाजिक मूल्य प्राप्त था। महावीर महावीर दुःषम-सुषमाकाल, अर्थात् अवसर्पिणीकाल की के काका का नाम सुपार्श्व और बड़ी बहन का नाम सदर्शना था। छह स्थितियों में चौथी स्थिति और इसी प्रकार छह स्थितियों महावीर जब त्रिशला के गर्भ में आये, तब कुण्डग्राम की वाले उत्सर्पिणी काल की तीसरी स्थिति में उत्पन्न हुए थे। वस्तुतः सम्पदाओं में वद्धि हई. इसलिए माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान यह दःख और सुख का सन्धिकाल था। ब्राह्मणों में किसी युगपुरुष रखा। वे ज्ञात (ज्ञात) नामक क्षत्रियवंश में उत्पन्न हए इसलिए के जन्म-ग्रहण को अवतार कहने की परम्परा है, किन्तु श्रमणदृष्टि वंश के आधार पर उन्हें ज्ञातृपुत्र (णायपुत्त) भी कहा गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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