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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन वेदान्त३२ - उदाहरण तथा उपनय।
अग्नि है, यह प्रतिज्ञा के रूप में जाना जाता है। महर्षि गौतम ने बौद्धदर्शन - दिनाथ आदि प्रारंभिक विचारकर३ -
प्रतिज्ञा को परिभाषित करते हुए कहा है२८ - साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा।" पक्ष, हेतु तथा दृष्टांत किन्तु धर्मकीर्ति तथा उनके बाद वाले
जिसके द्वारा साध्य का उल्लेख हो उसे प्रतिज्ञा कहते हैं। उदाहरण एवं उपनय ।
आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने कहा है - जैनमत - अवयव पर प्रकाश डालते हुए डा. मेहता ने साध्याभ्युपगमः पक्षः प्रत्यक्षाधिनिराकृतः। लिखा है२५ – अवयव का अर्थ होता है-दूसरों को समझाने के तत्प्रयोगोऽत्र कर्तव्यो हेतोर्गोचरदीपकः।।१४।। लिए जो अनुमान का प्रयोग किया जाता है, उसके हिस्से। किस
जिसका प्रत्यक्षादि से निराकरण संभव नहीं है ऐसे साध्य ढंग से वाक्यों की संगति बैठानी चाहिए? अधिक से अधिक
को ग्रहण करना, मान्यता देना पक्ष है। ऐसे पक्ष का प्रयोग कितने वाक्य होने चाहिए? कम से कम कितने वाक्यों का।
परार्थानुमान के संदर्भ में अपेक्षित है, क्योंकि यह हेतु का दीपक प्रयोग होना चाहिए, इत्यादि बातों का विचार अवयवचर्चा में।
यानी प्रकाशक होता है। किया जाता है।
पक्ष के संबंध में माणिक्यनंदी की उक्ति है - ___ आगमों से अनुमान के अवयव के संबंध में कोई
साध्यधर्मः क्वचित्तद्विशिष्टो वा धर्मो।।२।। जानकारी नहीं प्राप्त होती है। अवयवों की संख्या तथा प्रयोग के विषय में आचार्य भद्रबाहु की उक्ति है ३६--कत्थइ
पक्ष इति यावत्।।२२।। पंचावयवयं दसहा वा सव्वहा ण पडिकुत्थंति। वे मानते थे अनुमान में कभी तो धर्म साध्य होता है और कभी धर्म कि आवश्यकता के अनुसार दो से लेकर तीन, पाँच तथा दस विशिष्ट धर्मी। उस धर्मी को ही पक्ष कहते हैं। तक अवयवों की संख्या हो सकती है
जहाँ-जहाँ धूम होता है, वहाँ-वहाँ अग्नि होती है। जहाँ दो-प्रतिज्ञा तथा उदाहरण।
अग्नि नहीं होती है। वहाँ धूम नहीं होता। इसमें अग्निरूप धर्म तीन--प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण।
साध्य है। इस पर्वत में अग्नि है, क्योंकि वह धूमवाला है। जहां
जहाँ धुम होता है, वहाँ-वहाँ अग्नि होती है। इसमें अग्नि रूप पांच-प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टांत, उपसंहार, निगमन।
धर्म से विशिष्ट पर्वत (कभी) साध्य है। आचार्य हेमचन्द्र ने (क) दस--प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविशुद्धि, हेतु, हेतुविशुद्धि, दृष्टांत, गौतम की तरह ही सरल और संक्षिप्त रूप में कहा है - दृष्टांतविशुद्धि, उपसंहार, उपसंहारविशुद्धि, निगमन और निगमन
साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा--जिस वाक्य से साध्य का निर्देश -विशुद्धि।
होता है, उसे प्रतिज्ञा कहते हैं। (ख) दस--प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञाविभक्ति, हेतु, हेतुविभक्ति,
हेतु (हेऊ)-लक्षण-वैशेषिक-सूत्र में कणाद ने कहा हैविपक्ष, प्रतिषेध, दृष्टांत, आशंका, तत्प्रतिषेध और निगमन।
हेतुपरदेशोलिङ्गप्रमाणकरणमित्यनर्थान्तरम्।।९/२/४ इन अवयवों के प्रयोग के विषय में जैन विचारक ऐसा मानते हैं कि जो व्यक्ति विवेकी हैं, उन्हें समझाने के लिए दो,
___अर्थात्, हेतु, अपदेश, लिङ्ग, प्रमाण, करण के अर्थ में मन्द बुद्धि वालों के लिए दस तथा सामान्य लोगों को समझाने काई अतर नहीं है। ये पर्यायवाची हैं, ऐसा समझा जा सकता है। के लिए पाँच अवयवों के प्रयोग की आवश्यकता होती है।
अपदेश के विषय में उनकी उक्ति है। - प्रतिज्ञा (पहन्ना) - जिसे हम सिद्ध करना चाहते हैं, उसे
'प्रसिद्धिपूर्वकत्वादपदेशस्य।' साध्य कहते हैं और साध्य के प्रथम निर्देश के लिए प्रतिज्ञा शब्द अर्थात् - अपदेश प्रसिद्धिपूर्वक होता है। प्रसिद्धि से मतलब आता है। प्रतिज्ञा को जानते ही हमारा उद्देश्य प्रकाशित हो जाता है व्याप्ति। इससे यह ज्ञात होता है कि अपदेश व्याप्तिपूर्वक है। इस साध्यनिर्देश के लिए दूसरा नाम पक्ष भी है। पर्वत में होता है। जिसमें प्रसिद्ध या व्याप्ति नहीं होती है उसे अनपदेश
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