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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन - युक्त होते हैं तो कुछ में संहति (Mass) नहीं पाई जाती है, परंतु परमाणुओं, अणुओं में विद्युत आवेश संग्रहीत रहता है। इनकी इनमें ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा संग्रहीत रहती है। सचमुच चक्रण गति उनके चुम्बकीय आघूर्ण (Magnetic Moment) का भारी तत्त्वों की खोज एवं उनके नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया ___ कारण बनने की क्षमता रखते हैं। क्योंकि यह माना गया है कि ने परमाण्विक अध्ययन के क्षेत्र में एक सर्वथा नवीन मार्ग का इलेक्ट्रॉन अपने आप में एक सूक्ष्म चुम्बक(Micro Magnet) है, उद्घाटन किया। यह इतना अधिक महत्त्वपूर्ण बन गया कि इस अत: यह मान लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि नाभिकीय पर अलग से अध्ययन एवं शोध हेतु नाभिकीय विज्ञान (Nu- क्षेत्र के आसपास विद्युत चुंबकीय क्षेत्र बन जाते होंगे और ऐसा clear Science) नामक विज्ञान की एक नई शाखा बन गई। होता भी है। परमाणु - विखण्डन एवं सूक्ष्म कण विद्युत चुम्बकीय तरंगों की ऊर्जा का वितरण नियमित न होकर अनियमित ढंग से होता है। मैक्स फ्लैंक नामक वैज्ञानिक मूलभूत अथवा सूक्ष्मतम कणों के संबंध में पूर्व में उल्लेख ने इस दिशा में काफी शोध किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा हो चुका है। यहाँ हम परमाणु विखण्डन अथवा नाभिकीय कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक विद्युत चुम्बकीय तरंगों की विखण्डन के समय उत्पन्न होने वाले कुछ सूक्ष्मकणों के संबंध ऊर्जा का स्थानान्तरण क्वाण्टम के रूप में होता है। क्वाण्टम में भी विचार प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। ये कण हैं२२ __ऊर्जा की छोटी से छोटी इकाई. है। फोटॉन विद्युत चुम्बकीय न्यूट्रानो (Neutrino), फोटॉन (Photon), फोनॉन (Phonan), मेसॉन ऊर्जा के क्वाण्टम का संवाहक है। फोटॉन का एक निश्चित (Meson) आदि। प्राय: ये सभी कण अल्फा, बीटा, गामा के । • संवेग होता है, लेकिन उसमें न तो संहति होती है और न ही क्षय के समय या उसी प्रक्रिया के क्रम में उत्पन्न होते हैं। विद्युत आवेश। परन्तु इसमें ऊर्जा पाई जाती है। इसी तरह एक न्यूटीनो बहुत ही कम द्रव्यमान वाले तथा आवेशहीन और सक्ष्म कण फोनॉन (Phonan) है जो यांत्रिकीय तरंगों की कण होते हैं। इन कणों की अभिकल्पना, रेडियोएक्टिव विकिरण ऊर्जा का वाहक माना जाता है। में इलेक्ट्रॉन तथा पाजीट्रॉन कणों के उत्सर्जन के समय होने इसी अनुक्रम में मेसॉन (Meson) नामक एक नए सूक्ष्म वाले ऊर्जा-परिवर्तनों के कारण बताने के लिए की गई थी। कण की खोज हुई। यह अंतरिक्षीय विकिरणों द्वारा उत्पन्न होते न्यूट्रीनो, इलेक्ट्रॉनों से संबद्ध रहते हैं तथा इलेक्ट्रॉनों को ऊर्जा हैं। इसमें न तो इलेक्ट्रॉन पाए गए न ही पॉजीट्रॉन (Positron) या बाँटते हैं। अपने सूक्ष्म परिमाण के कारण प्रायः ये दूसरे कणों से फोटॉन (Photon)। अंतरिक्ष में होने वाले विकिरण से उत्पन्न प्रभावित नहीं होते हैं। इसी अनुक्रम में हम एन्टीन्यूट्रीनो होकर ये वायुमण्डल में बहुत अधिक दूर तक अंतर्पविष्ट हो (Antineutrino) नामक सूक्ष्म कण का भी उल्लेख करना आवश्यक जाते हैं। इस कार्य हेतु इनका अत्यन्त तीव्र गति से युक्त होना समझते हैं जिसे वैज्ञानिक पॉजीदान से संबद्ध तथा इनकी ऊर्जा आवश्यक है तथा इनका शीघ्र ही क्षय भी हो जाता है।२५ बाँटने वाला कण स्वीकार करते हैं।२३ उपर्युक्त विवेचित अधिकांश कण अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं भारी नाभिकों से निकलने वाली गामा किरणें अधिक और प्रायः इनकी उत्पत्ति परमाण्विक विखण्डन की क्रिया के ऊर्जा-सम्पन्न विद्युत चुंबकीय तरंगें होती हैं। विद्युत, चुम्बकत्व, कारण ही संभव होती है। अतः ऐसे सूक्ष्म कणों को मूलकण भी ताप आदि ऊर्जा के विविध रूप हैं। ऊर्जा के ये विविध रूप माना जा सकता है अथवा मूलकण के समकक्ष भी रखा जा तरंगों के रूप में संचरित होते हैं। प्रायः ऊर्जा के ये विविध रूप सकता है, परंतु ये मूलकण जैन दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित मूलकण एक-दूसरे के प्रतिरूपों में रूपान्तरित हो सकते हैं। जैसे ताप की भाँति वस्तुतः मूलकण ही हैं, यह नहीं कहा जा सकता। प्रकाश-ऊर्जा में, प्रकाश ताप-ऊर्जा में, विद्युत-ताप प्रकाश, क्योंकि दार्शनिक उन्हें ही मूलकण स्वीकार करते हैं जिनका और ध्वनि आदि विविध रूपों में। प्रायः ऊर्जा रूपान्तरण में कुछ नई विभाजन नहीं हो सकता। संभव है यह अभी तक एक विचार स्थिति-परिस्थिति बन जाती है। विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि मात्र प्रतीत हो रहा हो, लेकिन शायद भविष्य में विज्ञान के हाथ विद्युत आवेश की गति से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। भी कोई ऐसा कण लग जाए जिसका और अधिक विभाजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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