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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन - अनुसार पृथ्वी आदि चार धातुओं की उत्पत्ति एक जाति के को जड़ और अचेतन कहा गया है। ग्रीक और वैशेषिक परमाणु से हुई है। परमाणुवादियों का भी यही मत है। परमाणु गोल है - जैन और वैशेषिक दर्शन में परमाणु परमाणु एक ही भौतिक द्रव्य है - जैन दर्शन में परमाणु का आकार गोल बताया गया है, लेकिन ग्रीक परमाणुवादियों एक ही प्रकार के भौतिक द्रव्य पुदगल के माने गए हैं। ग्रीक का मत है कि परमाणुओं का आकार निश्चित नहीं होता है। अतः परमाणवादियों का भी यही मत है। लेकिन वैशेषिक ने चार आकार की अपेक्षा उनमें भेद है। प्रकार के भौतिक द्रव्य के परमाणु माने हैं। सभी परमाण एक ही तरह के हैं - जैन दर्शन में सभी परमाण सावयव और निरवयव है- जैन परमाणवाद परमाणुओं को एक ही तरह का माना गया है। ग्रीक दार्शनिको के अनसार परमाण सावयव और निरवयव है। परमाणु सावयव के मतानुसार परमाणुओं में मात्रागत, आकारगत तौल, स्थान, इसलिए है कि उसके प्रदेश होते हैं। ऐसा कोई द्रव्य ही नहीं हो क्रम और बनावट की अपेक्षा भेद माना गया है। जैन दर्शन की सकता जो सर्वथा शून्य हो। दूसरी बात यह है कि परमाणु का यह भी विशेषता है कि उसमें परमाणुओं में गुण 'मात्रा' आकार कार्य सावयव होता है। यदि परमाणु सावयव न होता तो उसका आदि किसी भी प्रकार का भेद नहीं माना गया है।३९ कार्य भी सावयव नहीं होना चाहिए। अतः स्कन्धों को सावयव परमाण आदि मध्य और अंतहीन है - जैन दर्शन में देखकर ज्ञात होता है कि परमाणु सावयव है। परमाणुओं को आदि, मध्य और अंतहीन बतलाया गया है। ग्रीक परमाणु निरवयव भी हैं, क्योंकि परमाणु प्रदेशी मात्र है। दर्शन में परमाणुओं को ऐसा नहीं माना गया है। ग्रीक दर्शन में कुछ जिस प्रकार अन्य द्रव्यों के अनेक प्रदेश होते हैं, उस प्रकार परमाणुओं को छोटा और कुछ को बड़ा बतलाया गया है। परमाणु के नहीं होते हैं। यदि परमाण के एक से अधिक प्रदेश परमाणु गतिहीन और निष्क्रिय नहीं है - जैन और (प्रदेशप्रचय) हों तो वह परमाणु ही नहीं कहलाएगा। परमाणु ग्रीक दर्शन में परमाणु को वैशेषिक की तरह गतिहीन और के अवयव पथक-पथक नहीं पाये जाते हैं। इसलिए भी परमाण निष्क्रिय नहीं माना गया है। जैन - ग्रीक दार्शनिकों ने परमाणु को । स्वभावत: गतिशील और सक्रिय कहा है। वैशेषिकों ने परमाणुओं में गति का कारण ईश्वर माना है जबकि जैन और ग्रीक दार्शनिकों अतः जैन परमाणुवादियों ने अनेकान्त सिद्धान्त के द्वारा परमाणु को सावयव और निरवयव बताया है। द्रव्यार्थिक नय को ऐसी कल्पना नहीं करनी पड़ी है। की अपेक्षा परमाणु निरवयव है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा परमाणु कार्य और कारणरूप है - जैन दार्शनिकों ने सावयव है। इसके विपरीत ग्रीक और वैशेषिक परमाणुवादी परमाणु को स्कन्धों का कार्य माना है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति दार्शनिकों ने परमाणु को निरवयव ही माना है। स्कन्धों के तोड़ने से होती है। इसी प्रकार परमाणु स्कन्धों का कारण भी है। लेकिन वैशेषिक और ग्रीक दर्शन में परमाणु केवल परमाणु काल-संख्या का भेदक है - जैन दर्शन के कारण रूप ही है कार्य रूप नहीं। अनुसार परमाणु काल-संख्या का भेद करने वाला है। आकाश के भौतिक परमाणु आत्मा का कारण नहीं है - ग्रीक एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक जाने में समय रूप जो काल लगता परमाणुवादियों के अनुसार आत्मा का निर्माण परमाणुओं से है उसका भेद करने के कारण परमाणु काल अंश का कर्ता कहलाता हुआ है। लेकिन जैन और वैशेषिक परमाणुवादी ऐसा नहीं मानते है। अन्य परमाणुवादियों ने ऐसा नहीं माना है। हैं। जैनपरमाणुवाद के अनुसार परमाणु शरीर, वचन, द्रव्य मान, . परमाणु शब्दरहित और शब्द का कारण है - जैन प्राणायान, सुख-दुःख, जीवन, मरण आदि के कारण हैं। भौतिक परमाणुवादियों ने परमाणु को शब्दरहित और शब्द का कारण परमाणु अभौतिक आत्मा के कारण नहीं हैं। बतलाया है। परमाणु अशब्दमय इसलिए है, क्योंकि वह एक परमाणु अचेतन है - परमाण भौतिक और अचेतन प्रदशा है। शब्द स्कन्धों से उत्पन्न होता है। परमाण शब्द का अर्थात् अजीव के कारण होने के कारण जैन दर्शन में परमाणओं कारण इसलिए है क्योंकि शब्द जिन स्कन्धों के परस्पर स्पर्श से trorarivariorstandariramilaritrodrirandirdroid [१३Hindiriraminisanitariandiarinitarianbidairandaridra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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