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________________ खवेत्तु यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - विवित्तचरिया चलिता या तत्थ धम्मे थिरीकरणत्था अध्ययन गाथा अगस्त्यसिंहकृत जिनदासकृत हरिभद्रकृत रतिवनकणामधेया पढमलचा भणिता। इदाणि चूर्णि चूर्णि चूर्णि विवित्तचरियोवदेसत्था बितिया चूला भाणिततव्वा।६२ मुक्का मुत्ता मुत्ता 13 साहबो साहुणो साहुणो अन्त में चूर्णिकार ने अपनी शाखा का नाम, अपने गुरु अहागडे हिं... अहाकडेसु.... अहागहेसु.... का नाम तथा अपना खुद का नाम बताते हुए निम्न गाथाएँ पुप्फेहि पुप्फेहि पुप्फे लिखकर चूर्णि की पूर्णाहुति की है-- कहं णु कुज्जा कतिहं कुज्जा कहं णु कुज्जा वीरवरस्स भगवतो तित्थे कोडीगणे सुविपुलम्मि। कतिहं कुज्जा (पाठान्तर) कयाहं कुज्जा (पाठा.) कतिहं कुज्जा (पा.) गुणगणवइराभस्सा वेरसामिस्स साहाए।।1।। कयाह कुज्जा ("" कहं णु कुज्जा (") कयाहं कुज्जा (") महरिसिसरिससभावा भावाऽभावाण मुणितपरमत्था कह सकुज्जा (") कथमहं (कहह) 2. 5 जिंदाहि रागं जिंदाहि दोसं रिसिगुत्तखमासमणो खमासमाणं निधी आसि।।2। जिंदाहि दोस विणए हि दोसं विणएज्ज राग विणएज्ज रागं तेसिं सीसेण इमा कलसभवमइंदणामधेज्जेणं। संपुच्छणं संपुच्छणा संपुच्छण दसकालियस्स चुण्णी पयाणरयणातो उवण्णत्था।3। संपुच्छगो (पाठा.) 3 15 खवेत्ता खवेत्ता रुयिरपदसंधिणियता छड्डियपुणरुत्तवित्थरपसंगा। चित्तमंतमक्खा. चित्तमत्ता अक्खा चित्तमंत्तमक्खा बक्खाणमंतरेणावि सिस्समतिबोधणसमत्था॥4॥ (पाठा.) (पाठा.) (पाठा.) ससमयपरसमयणयाण जंच ण समाधितं पमादेणं। 10 इच्छेतेहिं छहिं इच्चेतेहिं छहिं इच्चेसि छहं जीवनिकायेहि जीवनिकायेहि जीवनिकायाणं तं खमह पसाहेह य इय विण्णत्ती पवयणीणं।।5।। 5(प्र.उ.) 5 पाण-भूते य पाण-भूते य पाणि-भूयाई चूर्णिकार का नाम कलशभवमृगेन्द्र अर्थात् अगस्त्यसिंह 5) ____13 अणातिले अणाउले अणाउले है। कलश का अर्थ है कुंभ, भव का अर्थ है उत्पन्न और मृगेंद्र 5(") जहाभागं जहाभावं जहाभागे का अर्थ है सिंह। कलशभव का अर्थ हुआ कुंभ से उत्पन्न होने 15 पाणियकम्मतं दगभवणाणि य दगभवणाणि च इच्छेज्जा य इच्छेज्जा वाला अगस्त्य। अगस्त्य के साथ सिंह जोड़ देने से अगस्त्यसिंह गेण्हेज्जा 5(द्वि.उ.) 24 धारए धारए घावए बन जाता है। अगस्त्यसिंह के गुरु का नाम ऋषिगप्त है। ये आयारभावदोसेण गाथा नहीं आयारभावदोसनू कोटिगणीय वज्रस्वामी की शाखा के हैं। गाथा नहीं गाथा है गाथा नहीं प्रस्तुत प्रति के अंत में कुछ संस्कृत श्लोक है जिनमें मूल । - गाथा नहीं गाथा है गाथा नहीं प्रति का लेखन कार्य सम्पन्न कराने वाली के रूप में शांतिमति । भवियवं होयवयं के नाम का उल्लेख है-- 9(प्र.उ.) 1 चिट्ठे चिढे सिक्खे चिट्टे (पाठा.) 9(दि.अ.) 1 साला साला साहा. सम्यक् शांतिमतिर्व्यलेखयदिदं मोक्षाय सत्पुस्तकम्। 9(तृ.उ.) 15 घुणिय घुणिय विहुय प्रस्तुत चूर्णि के मूल सूत्रपाठ, जिनदासगणिकृत चूर्णि के 9 (च.उ.) ॥ आरुहतिष्टहि आरहंतेहि आरहंतेहिं मूल सूत्रपाठ तथा हरिभद्रकृत टीका के मूल सूत्रपाठ इन तीनों 10 दग दग तण में कहीं-कहीं थोड़ा-सा अंतर है। नीचे इनके कुछ नमूने दिए 10 10 विवज्जयित्ता विविंच धीर। विवज्जयित्ता जाते हैं जिनसे यह अंतर समझ में आ सकेगा। यही बात अन्य - 1' 1 चूलिका 14 कुसीलं सकुसील कुसिला ण प्पचलेंति णो पयलेंति सूत्रों के व्याख्याग्रंथों के विषय में भी कही जा सकती है। ' नप्पचलेंति 2 " 3 निफेडो निग्घाडो उत्तारो दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं के अंतर के कुछ नमूने इस ... 2 - 4 एवं तम्हा प्रकार हैं-- dawondoniaidiodeomotorionidironidansooraM ३५idinabrandomsudasudiominironionidaidodasidar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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