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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य -- ६७. उससे सूक्ष्म वायुकाय के अपर्याप्ता विशेषाधिक है। ८४. उससे सूक्ष्म पर्याप्ता वनस्पतिकाय के जीव संख्यात गुणा ६८. उससे सूक्ष्म तेउकाय के पर्याप्ता संख्यात गुणा है। यहाँ ये है, क्योंकि सूक्ष्म पर्याप्ता मोहे सूक्ष्म अपर्याप्ता मोहे सूक्ष्म सूक्ष्म मध्य स्वभावे क्योंकि अपर्याप्ता भी पर्याप्ता से घणा है। अपर्याप्ता स्वभावे सदेव संख्याता गुणा प्राप्त है। ६९. उससे सूक्ष्म पृथ्वीकाय के अपर्याप्ता असंख्य गुणा है। ८५. उससे सर्वसूक्ष्म पर्याप्ता जीव विशेषाधिक है, क्योंकि सक्षम पर्याप्ता पृथिव्यादिक साथे मिलाने से। ७०. उससे सूक्ष्म अपकाय के पर्याप्ता विशेषाधिक है। ८६. उससे सर्वपर्याप्ताअपर्याप्ता सूक्ष्म जीव विशेषाधिक है। ७१. उससे सूक्ष्म वायुकाय के पर्याप्ता विशेषाधिक है। ८७. उससे भव्य सिद्धक भव्य जीव विशेषाधिक है, इसलिए ७२. उससे सूक्ष्म निगोद ना शरीर अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है। जघन्य युक्त अनंता प्रमाण अभव्य जीव है, क्योंकि उसको ७३. उससे सूक्ष्म निगोदना शरीर पर्याप्ता संख्यात गुणा है। छोड़कर बीजा सब भव्य जीव है। ७४. उससे अभव्य सिद्ध के जीव अनंतगुणा है, क्योंकि जघन्य ८८. उससे निगोद के जीव विशेष अधिक है, क्योंकि निगोद के युक्त चौथा अनंता जितने है। जीव छोड़कर बीजा सब जीव असंख्यात लोकालोक प्रदेश ७५. उससे पडिवाइ प्रतिपति सम्यग् दृष्टि जीव अनंत गुणा है। प्रमाणज है। ७६. उससे सिद्धना जीव अनंत गणा है क्योंकि मध्य यक्त पांचमा ८९. उससे वनस्पति के जीव विशेषाधिक है। निगोदमां प्रत्येक अनंता जितने हैं। वनस्पति प्रक्षेपवा से। ७७. उससे बादर वनस्पतिकाय के पर्याप्ता जीव अनंत गुणा है, ९०. उससे एकेन्द्रिय जीव विशेषाधिक है। वनस्पति में क्योंकि जे महि एक निगोद ने अनंतमे भाग में सिद्ध है प्रथिव्यादिकना प्रक्षेपवा से। क्योंकि एक असंख्याता बादर वनस्पति में है। ९१. उससे तिर्यञ्च योनि के विशेष अधिक है। बेइन्द्रियाहि के ७८. उससे बादर पर्याप्ता जीव विशेषाधिक है। बादर पर्याप्ता मिलाने से। पृथ्वी कायादि प्रक्षेपवा से। ९२. उससे मिथ्या दृष्टि विशेषाधिक है, क्योंकि ए जीव चारे गति मो ७९. उससे बादर वनस्पतिकाय के अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है, मले छ। क्योंकि एकेक बादर निगोद पर्याप्तानी निश्चयि असंख्याता ९३. उससे अविरती जीव विशेषाधिक है, अविरती सम्यग् दृष्टि पर्याप्ता निश्चय होते है। जीव इसमें मिलने से। ८०. उससे बादर पर्याप्ता विशेषाधिक है। बादर पर्याप्ता पृथ्वी ९४. उससे सकषायी जीव विशेषाधिक है, क्योंकि उसमें देश कायादिक प्रक्षेपवा थकी। विख्यात है। ८१. उससे सर्व पर्याप्ता बादर जीव विशेषाधिक है। ९५. उससे छद्यस्थ जीव विशेषाधिक है, क्योंकि उपशांत मोही ८२. उससे सूक्ष्म वनस्पतिकाय के अपर्याप्ता असंख्य गुणा है, पण इसमें मिले है। इसलिए कि बादर जीवों से सूक्ष्म ज्यादा है, क्योंकि ९६. उससे संयोगी विशेषाधिक है, क्योंकि उसमें संयोगी केवली सर्वलोकव्यापी है। मिले है। ८३. उससे सक्ष्म अपर्याप्ता विशेषाधिक है, इसलिए कि सूक्ष्म ९७. उसमें सर्व संसारी जीव विशेषाधिक है. क्योंकि इसमें अयोगी अपर्याप्ता पृथ्वी कायादिक ने उसमें प्रक्षेपवा से विशेष केवली भी मिले है। अधिक होते हैं। ९८. उससे सर्व जीव विशेषाधिक है। इसमें सिद्धना जीव भी शामिल है। braduadroomowomadrandirdGirbrGroid-driibio-[७]60ndiaidiodoiramidrioriritd-dioraibardwadibrar मिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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