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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य २६. उससे ईशान देवलोक में रहने वाली देवियाँ बत्तीस गुणी ४९. उससे पंचेन्द्रिय अपर्याप्ता विशेष अधिक है। ज्यादा है। ५०. उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्ता विशेष अधिक है। २७. उससे सौधर्म देवलोकना देवता संख्यात गुणा है, क्योंकि ५१.उससे तेडन्द्रीय अपर्याप्ता ज्यादा है। वहाँ विमान ज्यादा हैं और दक्षिण दिशा में कृष्णपक्षी जीव ज्यादा हैं। ५२. उससे बेइन्द्रिय अप्रर्याप्ता ज्यादा है। २८. उससे सौधर्म देवलोकनी देवियो बत्रीस गुणी है। ५३. उससे प्रत्येक शरीर वाला बादर द वनस्पति कायना अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है। एक प्रभूत प्रतरमां अंगुलना असंख्यातमा २९. उससे भवनपति देवता असंख्याता है। भाग प्रमाण जितने सूची खंड होते हैं उतने है। ३०. उससे भवनपति नी देवीयो बत्तीस गणी है। ५४. उससे बादर निगोद पर्याप्ता अनंत कायना शरीर असंख्यात ३१. उससे रत्नप्रभानामा नरक पृथ्वीना नारकी असंख्यात है। गुणा है, जिस लिए संख्याता प्रतरमा एक अंगुल ने असंख्यात ३२. उससे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यन्च योनिया पुरुष असंख्यात गुणा है। जैसे जितने सूची खंड में समा सकते हैं, जितने खंड प्रमाण है। ३३. उससे खेचर योनि तिर्यन्च पंचेन्द्रिय स्त्रीयो तीन गुणी है। ५५. उससे बादर पृथ्वीकायना पर्याप्ता जीव असंख्यात गुणा है, जिससे प्रभूत संख्याता प्रतर मध्य में अंगुल ना असंख्याता ३४. उससे स्थलचर पंचेन्द्रिय योनिना पुरुष संख्यात गुणा है। . भाग मात्र सूची खंड जितने समा सकते उतने हैं। ३५. उससे स्थलचर पंचेन्द्रिय योनिनी स्त्रीयो तीन गुणी है। ५६. उससे बादर अपकाय के पर्याप्ता असंख्यात गुणा है, जिससे ३६. उससे जलचर पंचेन्द्रिय योनिना पुरुष संख्याता है। अत्यंत प्रभूत संख्याता प्रतर मध्य में अंगुलना असंख्य ३७. उससे जलचर पंचेन्द्रिय योनिनी स्त्रीयो तीन गुणी है। भाग जितने सूची खंड में समा सकते हैं जितने हैं। ३८. उससे व्यन्तर निकायना देवो संख्यात गुणा है। ५७. उससे बादर वायु काय के पर्याप्ता जीव असंख्यात गुणा है घनीकृत लोकना असंख्याता प्रतरने विषे जितने आकाश है ३९. उससे व्यन्तर निकायनी देवीयो बत्तीस गणी है। उतने प्रदेश प्रमाण में है। ४०. उससे ज्योतिष देवता संख्यात गुणा है। ५८. उससे बादर तेउकाय के अपर्याप्ता असंख्य गुणा है, जिससे ४१. उससे ज्योतिषी देवीयो बत्तीस गुणी है। असंख्याता लोकाकाश प्रदेश राशि प्रमाण है। ४२. उससे खेचर योनिना पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च नपुंसक संख्यात ५९. उससे प्रत्येक शरीर वाला बादर वनस्पति के अपर्याप्ता गुणा है। जीव असंख्यात गुणा है। ४३. उससे स्थलचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय योनिना नपुंसक संख्यात ६०. उससे बादर निगोद के अपर्याप्ता ना शरीर असंख्यात गुणा है। ६१. उससे बादर पृथ्वी काय के अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है। ४४. उससे जलचर तिर्यन्च पंचेन्द्रिय योनिना नपंसक संख्यात ६२. उससे बादर अपकाय के अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है। गुणा है। ६३. उससे बादर वायुकाय के अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है। ४५. उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्ता संख्यात गुणा है। ६४. उससे सूक्ष्म तेउकाय के अपर्याप्ता असंख्यात गुणा है, क्योंकि ४६. उससे सर्व पंचेन्द्रिय पर्याप्ता विशेष अधिक है। सर्वलोकव्यापी है। ४७. उससे बेइन्द्रिय प्रर्याप्ता विशेष अधिक है। ६५. उससे सूक्ष्म पृथ्वीकाय के अपर्याप्ता विशेषाधिक है। ४८. उससे तेइन्द्रीय प्रर्याप्ता विशेष अधिक है। ६६. उससे सूक्ष्म अपकाय के अप्रर्याप्ता विशेषाधिक हैं। Addroidroidroidroidoasardarodaridroomindian Fooranioranitoribordoorinironitorobiob-ordinaran गुणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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