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यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ- परिशिष्ट त्रिंशन्मात्रिक - चौपइयाछन्दः
★ आचार्यदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरचरणरेणुः मुनिसागरानन्दविजयः
जय जग हितकारी, हो यशधारी, अद्भुत् रूप निहारी। सूरिगुणालंकृत, धर्मधराधृत, दिनकर विश्वविहारी ।। करते हैं जागृत, उपदेशामृत से निशदिन नर-नारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी । । १ । । हैं शासननायक, संयमपालक जैनागम दिलधारी ।
निरख - निरख भू पर चलते पग धर, इरियासमिति निहारी ।। शम-दम-गुण-धारी, कर्मविदारी, हरते शंसय भारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी ।।२।। क्रोध, लोभ नहीं हैं, मान नहीं है, मायाकपटनिवारी ।
झूठवचन त्यागी, शिवपुररागी जीवदयानितधारी ।। परवस्तु नहीं लेते, नहीं स्त्री सेते, परिग्रह सब ही टारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी ।। ३॥ भवि - मधुकर आकर, गुण-रस पाकर, लख शुभ संयम - क्यारी । चित्त प्रफुल्लित कर, समकित को धर संसृति का दुःखवारी ।। इन्द्रियगण गोपी, विकथा लोपी, करते तप जयकारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी ।।४॥ विमलाचल गिरिवर, तीर्थ भद्रेश्वर, जैसलमेरुविहारी |
श्रीलक्ष्मणी, मांडव, मक्षी, भांडव, रैवतगिरि मनुहारी । । आबु, तरंगा, है अति चंगा, श्रीधुलेव जुहारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर ज्ञान गुणागर, आबालब्रह्मचारी ।। ५ ।। उपधानोद्यापन, तपसोपासन, प्रतिष्ठादि करि सारी ।
जिनशासन उन्नति, फिर-फिर करि अति, परम आनंदकारी ।। ग्रन्थावलीगुम्फित हर्षित पण्डित, होते लख लख प्यारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर आबालब्रह्मचारी ।।६।। है जन्म धवलपुर, चंपा मातर, सद्गुणी शीलाचारी ।
हैं ब्रजलाल पिता, सद्गुणाङ्किता, श्रावकव्रतनितधारी।। दुलिचन्दकिशोरी, गंगाजोरी भगिनी रमाकुमारी ।
यतीन्द्रसूरीश्वर, ज्ञानगुणागर, आबालब्रह्मचारी ।।७।।
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