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• यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व कृतित्व
इतनी व्यस्तता के बावजूद आप का साहित्य सृजन का कार्य भी निरंतर गतिशील बना हुआ था। आपने वि.सं. १९९६ में 'यतीन्द्रप्रवचन' की रचना की थी। इसका प्रकाशन सं. २००० में हुआ । इसी वर्ष समाधान प्रदीप का भी प्रकाशन हुआ। इसके पूर्व भी आपकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका था । आप का ३८वाँ वर्षावास आहोर में सम्पन्न हुआ। यहाँ भी वि.सं. २००१ में प्राणप्रतिष्ठा का कार्य और वैराग्यमूर्ति भाई-बहनों को दीक्षा व्रत प्रदान किये गये। जिनमें उल्लेखनीय नाम वर्तमानआचार्य श्रीमद् हेमेन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. है । आपने वि.सं. १९९९ आषाढ़ शुक्ला द्वितीया के दिन दीक्षाव्रत अंगीकार किया था और प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर माघ शुक्ला ६ को आपकी बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई ।
आप का उनचालीसवाँ वर्षावास (वि.सं. २००२ में बागरा में सम्पन्न हुआ। बागरा निवासियों की वर्षों पुरानी भावना थी कि उपधान तप का आयोजन करवाया जाये। आप की पावन निश्रा में इस वर्ष उनकी भावना ने मूर्तरूप लिया और उपधान तप सम्पन्न हुआ। उल्लेखनीय तथ्य यह रहा कि बागरा संघ ने कोरटा जी तीर्थ पर धर्मशाला निर्माण हेतु दस हजार रुपये देने की घोषणा की और इसी प्रकार जालोर के अष्टपदावतार नामक सौध शिखरी जिनालय के जीर्णोद्धार हेतु भी दस हजार रुपये की देने की घोषणा की।
वि. सं. २००२ में आचार्य भगवन् के सान्निध्य में बागरा में उपधान तप का कार्यक्रम चल रहा था। बागरा के समीप ही आकोली नामक एक छोटा सा गाँव है, वहाँ के श्रावक आप की सेवा में उपस्थित हुए और यहाँ उपधानतप का आयोजन करने की प्रार्थना की। आचार्य भगवन ने बागरा संघ की विनती स्वीकार कर ली। आप ने उपधान तप का शुभ मुहूर्त भी प्रदान किया। वास्तविकता यह है कि आकोली निवासी श्री लालचंद मिश्रीलाल भंडारी ने आकोली में अपनी ओर से उपधान तप करवाने की प्रार्थना श्री संघ के समक्ष प्रकट की थी। उनकी भावना के अनुरूप श्री संघ ने आचार्य भगवन् से निवेदन कर स्वीकृति प्राप्त की । उपधान तप के पूर्व आचार्य भगवन् अपने शिष्यों के साथ आकोली पधारे तो उनका अभूतपूर्व भक्तिभाव एवं श्रद्धाभाव के साथ नगरप्रवेश करवाया गया। उपधान तप यथासमय प्रारंभ हुआ। व्यवस्था अति सुंदर थी। उपधान तप का समस्त व्यय श्री लालचंद मिश्रीलाल भंडारी द्वारा वहन किया गया। इस अवसर पर साध्वीजी श्री देवेन्द्र जी म. की दीक्षा भी सम्पन्न हुई। आकोली के कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात् आचार्य भगवन् ने यहाँ से विहार कर दिया।
वि.सं. २००३ वैशाख शुक्ला तृतीया से बागरा में श्री कुसुमश्री जी म एवं श्री कुमुदश्री जी म. को दीक्षाव्रत प्रदान किया। यहां से विहार कर आपश्री हरजी पधारे। वि.सं. २००३ ज्येष्ठ कृष्णा ६ को मुनिराज श्री सौभाग्य विजय जी म एवं मुनिराज श्री शांति विजय जी म. को दीक्षाव्रत प्रदान किया। साथ ही साध्वीजी श्री क्षमाश्रीजी म. को भी दीक्षित किया। वि.सं. २००३ के अपने मूर्ति वर्षावास में उल्लेखनीय तथ्य यह रहा कि मूर्ति में आपश्री की प्रेरणा से एक पाठशाला का शुभारम्भ हुआ, जो कालांतर में शासकीय विद्यालय के रूप में परिणित हो गई। मूर्ति में भी प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न करवाया और माघ शुक्ला पंचमी को श्री देवेन्द्र विजय जी म. को दीक्षाव्रत प्रदान किया।
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