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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - रहा। इस प्रकार एक अमिट छाप छोड़कर आचार्यश्री का यह वर्षावास सानन्द् सम्पन्न हुआ और आप ने बागरा से विहार कर दिया।
आचार्य के रूप में अब आप का उत्तरादायित्व भी अधिक हो गया था। समूचे चतुर्विध संघ का मार्गदर्शन करना और उसमें एकता बनाये रखना एक गुरुतर कार्य है इसके अतिरिक्त भी संघ में अनेक कार्य होते हैं उनका भी निर्वहण करना पड़ता है। वैराग्यमूर्तियों को जैन भागवती दीक्षा प्रदान करना, प्रतिष्ठाअंजनशलाका सम्पन्न करना,उपधान तप का आयोजन करना, छरिपालित संघ यात्राओं का आयोजन
और उनका नेतृत्व करना पूजा पढ़वाना तथा अन्य संघहित के कार्यों को सम्पन्न करवाना। अपने शिष्यों -प्रशिष्यों के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करना-करवाना। संयमपालन में किसी भी प्रकार की शिथिलता न होने पाये इसका ध्यान रखना और स्वयं के द्वारा की जाने वाली धर्मराधना-स्वाध्याय आदि करना, दर्शनार्थी जिज्ञासुओं की जिज्ञासा का समाधान करना, समयानुकूल प्रवचन फरमाना प्रवचन के लिए तैयारी करना और शास्त्रानुसार लेखन-कार्य करना। आगत विद्वानों से चर्चा करना आदि विभिन्न कार्यों में आचार्य देव की दिनचर्या अतिव्यस्त हो गयी थी। इतनी व्यस्तता के बावजूद आप लेखन के लिए समय निकाल ही लिया करते थे। 'जहाँ चाह, वहाँ राह, कहावत के अनुसार आचार्य भगवन् अपना कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न करते थे। अपने आचार्य काल में आप ने अनेक वैराग्य मूर्ति भाई बहनों को दीक्षाव्रत प्रदान अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठाएं सम्पन्न करवायीं। सैकड़ों प्रतिमाओं की अंजन शलाका भी सम्पन्न की।
आप की निश्रा में जितने भी प्रतिष्ठोत्सव तथा अंजन शलाकाओं के कार्यक्रम सम्पन्न हुए उनमें बागरा के अतिरिक्त सियाणा का प्रतिष्ठोत्त्व काफी महत्त्वपूर्ण था सियाणा में वि.सं. २०००में देव २४कुलिकाओं में ६८ प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवायीं। इसके साथ ही उल्लेखनीय बात यह है कि यहाँ कुछ अप्रतिष्ठित प्रतिमाएँ रखी हुई थीं। उनके संबंध में आप ने श्री संघ को उपदेश देते हुए फरमाया आपलोग पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमाओं की स्थापना करा रहे हैं और प्रतिष्ठोत्सव में जितना होता है, उतना ही होगा, तब अप्रतिष्ठित प्रतिमाएँ जो आपके यहाँ कई वर्षों से रखी हुई हैं, उनको भी क्यों न इसी शुभावसर पर प्रतिष्ठित करवाया जाये। थोड़ा और व्यय करने पर दोनों कार्य पूर्ण हो जाते हैं।नहीं तो फिर अलग जब कभी उनकी प्राणप्रतिष्ठा करवायी जायेगी, सर्वप्रकार का व्यय और समारम्भ फिर नवविधि से करना पड़ेगा। समय को किसने देखा है ? आज क्या है और कल क्या होने वाला है। मेरी तो यही सम्मति है कि प्रतिष्ठित बिम्बों की स्थापना के साथ में ही अप्रतिष्ठित प्रतिमाओं की भी प्रतिष्ठांजनशलाका करवा ली जाय। आचार्य भगवन् का यह सामयिक सुझाव श्रीसंघ को लाभकारी प्रतीत हुआ और सर्वसम्मति से इसे स्वीकार किया गया। परिणामस्वरूप ५८ प्रतिमाओं की प्रतिष्ठांजनशलाका सम्पन्न हुई। इसके पश्चात् मण्डवारिया में प्राण-प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न किया और वि.सं. २००० का वर्षावास सियाणा में ही विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सानन्द सम्पन्न किया। वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् धाणसा में भी प्रतिष्ठोत्सव समारोहपूर्वक सम्पन्न करवाया।
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