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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व
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Tags आगम मर्मज्ञ मानविय काय माया आचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म.
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श्री भूपेन्द्र कुमार मनोरूणवार, जावरा...
वैदिक परम्परा में जो स्थान वेदों का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान त्रिपिटकों का है, वही स्थान जैन परम्परा में आगमों का है। मान्यता भेद के कारण दिगम्बर मतावलम्बी अपने आगम ग्रंथ अलग मानते हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन मतावलम्बी जहाँ पैंतालीस आगम ग्रंथ स्वीकार करते हैं, वहीं स्थानकवासी जैन मतावलम्बी बत्तीस आगम ग्रंथ ही स्वीकार करते हैं जो विद्वान् इन आगमग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन कर इनमें समाविष्ट गूढ़ रहस्यों को समझ लेता है, उसे आगमवेत्ता अथवा आगम मर्मज्ञ कहा जा सकता है।
जब हम आचार्य भगवन् श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म. को आगममर्मज्ञ की संज्ञा से अभिहित करते हैं, तो यह स्पष्ट है कि आचार्य भगवन् ने आगमसाहित्य का न केवल तलस्पर्शी अध्ययन किया होगा, वरन् आगम ग्रंथों के रहस्यों को भी भली-भाँति समझ लिया होगा। यद्यपि अभी हमारे पास इस बात का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है अथवा आचार्य भगवन् की कोई ऐसी पुस्तक भी नहीं है, जो सीधे आगम ग्रंथों से सम्बन्धित हो, तथापि आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी. म.सा. को आगम -मर्मज्ञ मानने के हमारे पास यथेष्ट प्रमाण हैं। इसके लिए हमें आचार्य भगवन् के सांसारिक परिवार की पृष्ठभूमि में जाना होगा।
आचार्य भगवन् के सांसारिक पितामाह पं. सौभाग्यचन्द्रजी अच्छे पंडित और धर्मशास्त्रों के ज्ञाता थे। इनके तीन पुत्रों में से एक श्री ब्रजलालजी हमारे आचार्य भगवन् के सांसारिक पिताश्री थे। श्री ब्रजलालजी ने अपने सभी गुणों को द्विगुणित करके धारण किया था और इस प्रकार श्री ब्रजलालजी ने अपने आपको अतिजात पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया।
आचार्य भगवन् की सांसारिक माता सौ. चंपा कुँवर ने भी अपने शास्त्रज्ञ पति से दिगम्बर जैन शास्त्रों की प्रमुख बातों से अवगति प्राप्त कर ली थी। इस प्रकार माता-पिता दोनों जैन शास्त्रों के ज्ञाता थे। विदुषी माता और पंडित पिता से बाल्यावस्था में आपको सुसंस्कार मिलने के साथ ही जैन शास्त्रों की कथाएँ भी सुनने को मिलीं।
परिणामस्वरूप आपकी रुचि शास्त्रों के अध्ययन की ओर बढ़ी, किन्तु सब दिन एक समान नहीं रहते। यह ज्ञान अधूरा उस समय रह गया, जब माता चम्पाकुँवर एकाएक स्वर्ग सिधार गईं और युवा होतेहोते पिताश्री भी देवलोक गमन कर गए। विषम परिस्थितियों में आप अपने मामा के घर से निकलकर जैनागमों के महापंडित आचार्य भगवन् श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म. की सेवा में जा पहँचे।
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