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________________ • यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - आचार्य श्री द्वारा अपनी बाल्यावस्था में लिए गए संकल्प की सफलता की स्वर्णिम वेला उपस्थित थी। आचार्यश्री ने श्रीसंघ को सम्बोधित करते हुए गुरुतीर्थ निर्माण की भावना प्रकट की और इस योजना को अपना आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही अपनी गद्दी के उत्तराधिकारी मुनिराज श्री विद्या विजयजी एवं गुरुदेव की क्रियोद्धारक पुण्य भूमि में ही जन्मे बाल मुनि देवेन्द्र विजयजी एवं जयप्रभविजयजी को इस योजना तथा अपने संकल्प और ध्येय से अवगत कराते हुए इस स्वप्न को शीघ्रातिशीघ्र साकार करने के निर्देश दिए। स्वप्न तो सबने अपनी आँखों में सँजोये रखा था। स्वप्न की साकारता का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री के आदेशाअनुसार भूमि प्राप्त करने का निर्णय लिया इतना होजाने पर भी श्रीसंघ को भूमि का वास्तविक कब्जा लेने हेतु बहुत प्रयास करने पड़े। -कृतित्व यद्यपि इस पुण्य भूमि के स्वप्नदृष्टा का तो संवत् २०१७ की पौष सुदि ३ को देवलोक गमन हो गया था, लेकिन उनका आदेश वर्तमान आचार्यश्री विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., मुनिराज श्री देवेन्द्र विजयजी एवं जयप्रभ विजयजी के कानों में आज भी गूँज रहा था और वे सब अपने गुरु की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए इसके लिए प्राण-पण से समर्पित थे। आचार्यश्री की प्रेरणा से मिती सं. २०२८ आसोज सुदि १० संवत् को जावरा के ही श्रेष्ठी श्री लालूरामजी लूकड़ के करकमलों से श्री राजेन्द्र सूरि जैन दादावाड़ी का भूमि-पूजन होने के बाद श्री जेठमलजी रुणवार की अध्यक्षता में कार्य प्रारम्भ हुआ। आचार्यश्री एवं मुनिद्वय की प्रेरणा से गुरुभक्तों ने इस गुरु तीर्थ - निर्माण हेतु राशि प्रेषित करना प्रारम्भ कर दिया। जब जावरा श्रीसंघ के प्रतिनिधि मुनिद्वय के पत्रों के साथ जैन संग्रह करने हेतु बम्बई पहुँचे, तब परम पूज्य ज्योतिषाचार्य ज्योतिष सम्राटशिरोमणि मुनि प्रवर श्री जयप्रभविजयजी श्रमण के उपदेश से भीनमाल के एक गुरुभक्त श्री मूलचन्दजी फूलचन्दजी बाफणा ने इस परम पवित्र भूमिपर गुरु मंदिर अपनी तरफ से बनवाने की भावना प्रकट की। श्रीसंघ के सदस्यों ने आचार्यश्री एवं मुनिद्वय से चर्चा कर बाफना परिवार को अपनी सहमति प्रदान की। श्रद्धावान् गुरुभक्तों की निर्माण समिति ने अपनी पूर्ण योग्यता से कार्य करते हुए जल्दी ही निर्माण को प्रतिष्ठा की स्थिति तक पहुँचा दिया और जावरा श्रीसंघ ने खाचरौद में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य श्री विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एवं मुनि मण्डल से जावरा पधार कर इस प्रथम गुरु तीर्थ में गुरुदेव की मनोहारी प्रतिमा प्रतिष्ठित करने की विनती करते हुए मुहूर्त प्रदान करने का आग्रह किया। Jain Education International आचार्यश्री ने ज्योतिष विशारद मुनिराज श्री जयप्रभ विजयजी श्रमण एवं मुनि-मण्डल से विचारविमर्श के पश्चात् अगहन सुदी ५ संवत् २०३० को प्रतिष्ठा का मुहूर्त प्रदान किया। मुहूर्त पाते ही जावरा में प्रसन्नता के समुद्र में ज्वार आ गया। समाज के समस्त सदस्यों ने विभिन्न समितियों के माध्यम से अपनेअपने दायित्वों को ग्रहण किया और उन्हें पूर्ण करने में जुट गए। ६७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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