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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - आचार्य देव श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरिजी द्वारा ___रचित साहित्य : एक वर्गीकरण गुरुणिजी महत्तारिका श्री ललित श्रीजी की शिष्या म. तत्त्वलोचना श्रीजी.... सदियों से जैन साधु तथा साध्वी साहित्यसृजन करते आये हैं। उनके द्वारा रचे गये अनेक ग्रंथ आज की परिस्थिति में भी प्रासंगिक हैं। इसका मूल कारण यह है कि उनका साहित्य किसी समय विशेष की परिधि में बँधा हुआ नहीं है, वे जिस उद्देश्य को लेकर साहित्य-सृजन करते हैं, वह सदैव विद्यमान रहता है। यही कारण है कि उनके साहित्य का जब भी अध्ययन किया जाता है, तभी वह नया और समसामयिक प्रतीत होता है। विश्ववंद्य प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुदेव जैनाचार्य श्रीमदविजय राजेन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. ने श्री अमिधान राजेन्द्र कोश के साथ ही अन्य अनेक ग्रंथों का सृजन किया जो आज भी उपयोगी है। आप के ही सुयोग्य शिष्यरल आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वर जी म.सा. ने भी अपने जीवननिर्माता गुरुदेव का अनुसरण करते हए लगभग साठ ग्रंथों का निर्माण किया। आप द्वारा रचित ये ग्रंथ आज भी उपयोगी लगते हैं और हमारे मार्गदर्शन के लिए उद्यत हैं। यह तो हमारे ऊपर है कि हम उनका कितना उपयोग करते हैं। आप द्वारा रचित ग्रंथ विभिन्न विषयों से संबंधित है , इसलिए हम यहाँ आप द्वारा रचित साहित्य का विषयवार वर्गीकरण करना समीचीन समझते हैं। ऐसा करने से आप के साहित्य का वर्गीकरण तो होगा ही, साथ ही हमारे सम्मुख स्पष्ट रूप से विषय-विभाजन की रूपरेखा भी आ जायेगी। अस्तु आप द्वारा रचित साहित्य का वर्गीकरण इसप्रकार किया जा सकता है। यह वर्गीकरण विषयवार है १. सम्पादित साहित्य २. यात्रा साहित्य ३. प्रवचन साहित्य, ४.जीवनीपरक साहित्य, ५. धार्मिक साहित्य ६. ऐतिहासिक साहित्य और ७ स्फुट साहित्य। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१. सम्पादित साहित्य - आचार्य भगवन् एक कुशल सम्पादक भी थे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आपने गुरुदेव के देवलोक गमन के पश्चात् उनके द्वारा रचित श्री अभिधानराजेन्द्रकोष का कुशलतापूर्वक सम्पादन कर प्रकाशन करवाया। श्री अभिधानराजेन्द्रकोश आज न केवल भारतवर्ष में वरन् सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है। यह मागधी और प्राकृत भाषा का सबसे महान कोश है। २. यात्रा साहित्य - इतिहासनिर्माण के साधन के रूप में यात्रा साहित्य का प्राचीन काल से ही महत्व रहा है। भारतवर्ष में प्राचीन काल में जितने भी विदेशी यात्री आये और उन्होंने भारतवर्ष के विषय में जो कुछ लिखा वह इतिहास की अमूल्य धरोहर है। हमारे देश के लेखकों ने इस विषय पर बहुत ही कम लिखा है। आचार्य भगवन चूंकि इतिहासप्रेमा थ, इसालए आपन तिहासप्रेमी थे, इसलिए आप ने इस विषय पर अपनी कलम चलायी और సాంసారరరరరరరmous report ion Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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