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- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व - मामा के यहां - अपने पिताश्री के स्वर्गवास के पश्चात् रामरत्न को भोपाल में ही रह रहे उनके मामा ठाकुरदास अपने यहां ले गए। ठाकुरदास नि:संतान थे और भोपाल में ही व्यवसाय करते थे। धौलपुर से काका रामरत्न को लेने आए तो ठाकुरदास ने भेजने से मना कर दिया। चूँकि रामरत्न को यहां कोई कष्ट नहीं था, इस कारण काका ने भी अधिक आग्रह नहीं किया और वापस धौलपुर चले गए। अब रामरत्न की जीवनचर्या में परिवर्तन हो गया। पाठशाला का स्थान दुकान ने ले लिया जब से रामरत्न ने दुकान पर बैठना शुरू किया, तब से बिक्री भी अधिक होने लगी। रामरत्न ने व्यवसाय में भी अपनी कुशलता और बुद्धिमता का परिचय दिया। परिणाम यह हुआ कि रामरत्न का परिचयक्षेत्र और अधिक बढ़ गया। मित्रों की संख्या में भी वृद्धि हो गई। रात्रि को सब अपनी-अपनी दुकानें बंद कर इनकी दुकान पर आकर बैठ जाते और गप-शप में मग्न हो जाते। इस अनुक्रम में प्रायः विलंब हो जाया करता था। मामा को इनका विलंब से आना तो अच्छा नहीं लगता किन्त इनके कार्य से प्रसन्न होने के कारण इनसे कछ कहते नहीं थे। किन्तु जब अधिक विलंब होने लगा तो टोका-टोकी शुरू हो गई। इसी बीच रामरत्न के बाल्य-जीवन की कुछ साहस भरी घटनाएँ भी हईं जिनमें एक ठग की कला पर पानी फेरना, एक चोर को पकड़वाना और राज्य द्वारा सम्मानित होना प्रमुख है।
यद्यपि मामा ठाकुरदास पर अपने भानजे रामरत्न के इन साहस भरे कार्यों का अच्छा प्रभाव पड़ा था, किन्तु उन्हें रामरत्न का विलंब से आना अच्छा नहीं लगता था। एक रात्रि में जब रामरत्न अधिक विलंब से लौटे तो मामा ने द्वार नहीं खोले। फलस्वरूप रामरत्न ने मकान के बाहर चबूतरे पर ही रात व्यतीत की। प्रातःकाल मामा ने अपने भानजे की वीरता, सहसिकता, निडरता की प्रशंसा सुनी तो उसे अपने व्यवहार पर पश्चाताप हुआ और उसने अपने भानजे को अपने वक्ष से लगाकर कहा कि तुम इतना विलंब मत किया करो। दोनों पुनः परस्पर प्रेमपूर्वक रहने लगे।
जीवन में परिवर्तन - रामरत्न एक बार अपने मित्रों के साथ एक नाटक देखने गए। लौटने में रात्रि अधिक हो गई। मामा ठाकुरदास अपने भानजे की इस आदत से पहले ही नाराज था। आज तो वह आगबबूला होकर बैठा था। जिस समय रामरत्न का आगमन घर हुआ, मामा ने उल्टी-सीधी सुनाना शुरू कर दिया और क्रोधावेश में कहते-कहते कह गए- 'यही स्वभाव रहा तो भिक्षा माँगोगे। मैं नहीं होता तो रगड-रगडकर मरना पड़ता।' मामा के ये शब्द रामरत्न के वक्षस्थल को आहत कर गए। तलवार का घाव तो भर जाता है, किन्तु शब्दों का घाव कभी भी नहीं भरता। रामरत्न बिना कुछ कहे ही वहाँ से लौट पड़े। sh दूसरे दिन से रामरत्न ने अपने एक हलवाई मित्र की दुकान पर नौकरी कर ली। उनकी बहन गंगाकुँवर का विवाह भोपाल में ही हुआ था। रामरत्न अब अपनी बहन के यहां भोजन करने लगे। वे भोपाल में रह तो रहे थे, किन्तु मामा के द्वारा कहे गए शब्दों का शल्य उनके हृदय में चुभ रहा था। अब उनका मन भोपाल में लग नहीं रहा था। इनके मामा को अपने कथन पर पश्चात्ताप हुआ और मामा-मामी
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