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-यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म हैं तो कामचोर कर नहीं देते हैं, तो टैक्सचोर हो जाते हैं, भगवान किसी से छिपकर अथवा स्वामी की दृष्टि बचाकर वस्तु महावीर ने कहा है
ले लेना छन्न चोरी है । जैसे सुनार देखते देखते स्वर्ण रजत चुरा अदिन्नमन्नेसु य णो गहेज्जा। सूत्रकृतांग। १०/२
लेता है वह नजर चोरी है। ऊपर से ठगना, झूठा विज्ञापन करने
धन कमाना ठगी चोरी है। ताला गाँठ आदि खोलकर वस्तु या इसका तात्पर्य यह है कि बिना दी हुई किसी भी वस्तु को
धन ले जाना उद्घाटक चोरी कहलाती है। किसी को डरा धमका ग्रहण न करो। भगवान का तो यह भी कहना है कि दाँत कुरेदने
कर उसे लूटे लेना बलात्, चोरी है। किसी पर आक्रमण करके, के लिए एक तिनका भी न लो।
उसके घर या दुकान में प्रवेश कर धन सम्पत्ति ले जाना घातक दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जंण। उत्तराध्ययन १९/२८ चोरी कहलाती है। आजकल ये सभी प्रकार की चोरियाँ खूब हो
की
सभी समोरीका निशा रही है, बल्कि अंतिम तीन प्रकार की चोरियों का तो बोलबाला है। ही किया है। प्रश्न यह उपस्थित होता है कि व्यक्ति चोरी क्यों इनके अतिरिक्त वर्तमान युग में कुछ सभ्य प्रकार की करता है। पहली बात तो यह है कि वह अपनी आवश्यकता की चोरियाँ भी हो रही है। जैसे कम बोलना और अधिक मूल्य पर्ति के लिए करता है। इससे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लेना, मिलावट करना, घुस-घोरी, झूठे दस्तावेजों के माध्यम से चोरी करने का कारण लोभ है उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है। सम्पत्ति हड़पना। पक्षपात करना, अर्थ चोरी के साथ-साथ सूवे अतित्ते ये परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेिं।
आजकल नाम की चोरी, साहित्य की चोरी उपकार की चोरी, अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं।। ३२/२९ आदि भी खूब हो रही हैं। विवेक सम्पन्न व्यक्ति को इस प्रकार
की चोरियों से बचना चाहिये। तात्पर्य यह है कि रूप में अतप्त तथा परिग्रह में आसक्त । है। उस और उपसक्त (अत्यन्त आसक्त) व्यक्ति सन्तोष को चोरी मनुष्य के चरित्र को नष्ट करती है, उसके साहस और प्राप्त नहीं होता। वह असंतोष के दोष से दुःखी एक लोभ से कर्तव्य परायणता को समाप्त करती है चोरी व्यक्ति में हीन व्याकुल व्यक्ति दूसरे की अदत्त (नहीं दी हुई) वस्त ग्रहण करता भावना का संचार करती है चोरी करना भी पाप की श्रेणी में आता (चुराता) है।
है। अतः सदैव इससे बचने के लिए प्रयास करना चाहिये। इससे
तभी बचा जा सकता है कि जब मन में आए लोभ से बचा जाये। इसे चोरी का आभ्यन्तर कारण कह सकते हैं।
अतः लोभ को भी अपने पास फटकने नहीं देना चाहिये। चोरी के बाह्य कारण निम्नानुसार बताये जाते हैं
(७) परस्त्री सेवन- कामवासना एक ऐसी ज्वाला है, जो (१) बेकारी (२) दरिद्रता (३) फिजूलखर्ची (४) यशः जैसे-जैसे भोग में अभिवृद्धि होती है, वैसे-वैसे और भड़कती कीर्ति की लालसा (५) स्वभाव या कुसंस्कार और
जाती है। परिणाम यह होता है कि मनुष्य की सम्पूर्ण सुखशांति (६) अराजकता।
उस ज्वाला में भस्म हो जाती है। परस्त्री गमन निंदनीय कृत्य है। संस्कारी व्यक्ति किसी भी स्थिति में चोरी ओर निकटतम परस्त्री गामी व्यक्ति अविश्वसनीय होता है। उसकी स्वयं की कार्य नहीं करेगा। वास्तविकता तो यह है कि चोरी एक असामाजिक पत्नी भी सदैव उससे नाराज रहती है। उसका मन सदैव कलुषित वर्जित कार्य है। संस्कारवान व्यक्ति इस तथ्य से भलीभाँति रहता है। उसका ध्येय एक ही रहता है। परनारी सेवन। जिस भी परिचित रहता है। इस कारण वह चोरी करना तो क्या चोरी के नारी को वह देखता है, वह उसकी ओर वासनात्मक दृष्टि से विषय में कुछ सकारात्मक विचार भी नहीं कर सकता। आकर्षित हो जाता है। वह वासनांध हो जाता है। परस्त्रीगामी प्रश्न व्याकरण सूत्र में चोरी के तीस नाम बताये गये हैं।
व्यक्ति जीवन भर असंतुष्ट बना रहता है। एक विचारक ने छह प्रकार की चोरी बतायी है। (१) छन्न चोरी विचारकों ने परस्त्रीगमन के प्रमुख कारण इस प्रकार बताये (२) नजर चोरी (३) ठगी करके चोरी (४) उद्घाटक चोरी हैं। (५) बलात् चोरी और (६) घातक चोरी।। androidrodrsairdriadrianitariandidreddinidad ६४Karinitarinirodaradirdindidroidddddddasaram
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