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________________ अभिनन्दन की वेला में वंदन 0 कमला माता इन्दौर, मैंने क्या पाया ? सरलता ! सहजता ! स्नेहशीलता ! जहाँ वणं शुभ्र है तो हृदय में भी शुभ्रता है। ऐसे महान व्यक्तित्व श्रमणीरत्न महासतीजी उमरावकंवरजी 'अर्चना' म. सा. के दर्शनों का लाभ मुझे ब्यावर में प्राप्त हुआ। प्रथम दर्शनों की झलक ने मुझे इतना आनन्दित कर दिया कि समय की गति का भी ध्यान नहीं रहा । जिसके हृदय में करुणा का स्रोत्र बह रहा हो वहाँ अहिंसा की चर्चाओं को सहज स्थान मिल जाना कोई प्राश्चर्य नहीं। मैंने अपने अनुभव के आधार पर पू. महासतीजी के सम्मुख ऐसे व्यक्ति का उदाहरण रखा कि जिसका जीवन ही हिंसात्मक कार्यों में संलग्न था। कुसंगतियों के कारण मानव, दानव का रूप ले लेता है । पुनः दानव से मानव कैसे बने ये लोग, संक्षिप्त में पू. म. श्री को बताया । आपश्री ने बहुत ही प्रमोद भरी भावना व्यक्त की 'सच में मनुष्य धूल भरा हीरा है'। पू. महासतीजी से चर्चा करते हुए ऐसा अनुभव हो रहा था कि वर्षों से मुझे इस सान्निध्यता का लाभ मिल रहा है। आपकी सहज मुस्कान आगन्तुक को आकर्षित करे बगैर रहती ही नहीं। इतना विद्वत्ता भरा जीवन ! कई उक्तियों से भरी वक्तृत्वकला, तो साथ ही लेखनकला भी । गद्य पद्य में आपके द्वारा लिखित साहित्य भी प्राप्त होता है। विद्वत्ता के साथ-साथ आपकी साधना भी अविरत गति से चलती है-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप चारों का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। जहाँ तप है तो ज्ञान नहीं, और ज्ञान है तो चारित्र नहीं, लेकिन यहाँ तो चारों का समन्वय है। ध्यानसाधना भी आपकी अनुपम है। अापका दृढसंकल्पी जीवन है, इसकी झांकी हमें 'अग्निपथ' में देखने को मिलती है। इन्हें संकटों के प्रहार भी अपने कर्तव्यपथ से नहीं डिगा सके। मैंने सोचा भी नहीं था कि इस महान विभूति के सान्निध्य में चर्चा के लिए इतना समय मिल पायेगा लेकिन यह क्या ! मुझे तो प्रथम दर्शन ही आत्मीयता भरे प्राप्त हुए। बहुत आनन्द प्राया, आपश्री के सान्निध्य में । जहाँ जीवन में सहजता है, वहाँ ही गुणों की झांकियां भी प्राप्त होती हैं। ___इस महान विभूति को साधना मार्ग पर चलते हुए अर्द्ध शताब्दी पूर्ण होने जा रही है। साधना का पालोक स्वयं को तो प्रकाशित करता ही है, लेकिन अनेक भव्य-प्रात्मानों के जीवन को भी प्रकाशित करता है। इस अानन्दमयी अभिनन्दन की शुभ वेला पर शत-शत वन्दन; अभिनन्दन! आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन | ३४ Jah Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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