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तुम जीवन की दीप शिखा हो,
जिसने केवल जलना जाना। तुम जलते दीपक की लौ हो,
जिसने जलने में सुख माना। आपका पवित्र जीवन त्याग तप का दिव्य भण्डार है । आपके अध्यात्म जीवन को यदि चन्दन वृक्ष की उपमा दें तो यह उचित प्रतीत होता है। जैसे चन्दन अपनी सुगन्ध बिखेरता है और पास में बैठने वालों को, हाथ में लेने वालों को सुगन्धित बना देता है ऐसे ही आप श्री के पवित्र चरणों में जो बैठता है, पापका सान्निध्य प्राप्त करता है, वह आपकी गुण-सम्पदा के सौरभ से सुरभित हो जाता है ।
हे अर्चनाश्री ! आपका आशीर्वाद व सान्निध्य हमेशा प्राप्त होता रहे, आप दीर्घायु हो, मार्ग-दर्शन देते रहें, इन्हीं मञ्जुल भावनागों के साथ........
यथा नाम तथा गुण
0 साध्वी तरुणप्रभा
चारों ओर फैले घने अन्धकार में जब कोई दीपक जल उठता है, तब अन्धकार दबे पाँव भागने लगता है और आलोक में प्रत्येक वर्ण और प्राकार स्पष्ट दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार से व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर जब कोई सन्त साधना-पथ पर चलने का निश्चय करता है तब अज्ञानरूपी अन्धकार दूर हो जाता है। पाँच दशक पूर्व एक युवा साध्वी श्री उमरावकंवरजी 'अर्जना' म. सा. ने भगवती दीक्षा अंगीकार कर संयम-पथ पर पाँव रखा था। आज वह इस पथ पर अनेक कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं। वस्तुतः अभिनन्दन से उनकी गरिमा इतनी नहीं बढ़ रही है जितनी गरिमा उनसे अभिनन्दन की बढ़ रही है।
आप पर 'यथा नाम तथा गुण' वाली कहावत चरितार्थ होती है। अर्चना शब्द का अर्थ है पूजा। आपश्री का जीवन पूजा के समान ही पवित्र, अलौकिक एवं जीवात्माओं को सहज आकर्षित करने वाला है। मैंने आपश्री का सर्वप्रथम दर्शन सम्वत् २०३४ में चांदावतों का नोखा ग्राम में किया था। आपके सान्निध्य में मैंने दिव्य-गुणों की सौरभ अनुभव की । प्रापका हृदय स्नेह और सद्भावना से ओतप्रोत है। आपके समक्ष बालक, युवक, वृद्ध सभी श्रद्धावश नतमस्तक हो जाते हैं। आप युवकों के लिए प्रेरणा, बच्चों के लिए वात्सल्य और वद्धों के लिए अपनत्व की प्रतिमूर्ति हैं। आप गूढ़ से गूढ़ दार्शनिक रहस्यों को भी जिस सरल ढंग से समझाती हैं वह प्रशंसनीय है।
मुझे आपके रूप में शील, क्षमा, सन्तोष और सेवाभाव की निर्मलज्योति का अभिनंदन करते हुए गर्व की अनुभूति हो रही है
वन्दनीय है साधना, वन्दनीय है ज्ञान । आत्म साधना से सदा मानव बना महान ॥
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड/३३
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