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________________ जनदर्शन में समतावादी समाज-रचना के प्रेरक तत्त्व / ३३७ इस्लाम में भी परिग्रह को निंदनीय माना गया है। समाज को समतावादी भूमि प्रदान करने के लिए आर्थिक विषमता की ऊँची होती दीवारों को तोड़ना होगा। भारतीय समाज में जातिवादी प्रथा एक अभिशाप है, कलंक है। एक जाति का व्यक्ति अपने को दूसरी जाति के व्यक्ति से श्रेष्ठ समझता है। शूद्र अछुत, अस्पृश्य समझे जाते थे। डा. अम्बेडकर जैसी राष्ट्र-विभूति को जातिवाद के कारण घणा, अपमान का शिकार होना पड़ा, फलतः उन्होंने हिन्दूधर्म का परित्याग कर बौद्धधर्म अंगीकार किया। इस शताब्दी की महानात्मा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अछूतों, शूद्रों को 'हरिजन' का नाम देकर समाज में आदर और समानता का दर्जा देने का भरसक प्रयत्न किया और उसमें वे कुछ सफल भी हुए। परन्तु हरिजनों पर अाज भी यातनामों की बिजली गिराई जाती है। अनेक स्थानों पर उन पर पुलिस द्वारा, उच्च जाति के लोगों द्वारा जुल्म ढाये जाते रहे हैं। कहने को तो हमारा संविधान धर्म, जाति से ऊपर है, धर्म और जाति निरपेक्ष है, परन्तु व्यवहार में हम कितने धर्मनिरपेक्ष या जातिनिरपेक्ष हैं ? सन् १९४७ से अब तक हम हरिजनों की दशा में सुधार नहीं कर सके। यह अवधि कोई कम नहीं है। राजनीति में धर्म, जाति का दखल नहीं होना चाहिए, राजनीति को धर्म में, धर्म को राजनीति में नहीं लाना चाहिए। परन्तु निर्वाचन में जाति/धर्म के आधार पर 'पार्टी मेनडेट' दिया जाता है। मुस्लिम बहुल इलाके में मुस्लिम को एम एल. ए. या एम. पी. का टिकिट पार्टियां देती हैं। इस प्रकार राजनीति में, निर्वाचन में हम धर्म और जाति को खुद ही दाखिल कर देते हैं। धर्म और जाति के नाम में हम एक-दूसरे के गले को काटते हैं, मकान-दुकान जलाते हैं । क्या यह मनुष्य के लिए शोभनीय है ? हिन्दू-मुस्लिम दंगे अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतन्त्र भारत में प्राज तक जारी हैं, उन्हें हम बन्द नहीं करा सके। हजारों साल पहले महावीर ने मनुष्य की समानता का एक आदर्श प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है। उन्होंने स्वयं हरिकेश चाण्डाल को गले से लगाया, उसे मुनि बनाया और कहा मनुष्य को मनुष्य से घृणा नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है। सब भगवान् बन सकते हैं। जैनदर्शन यह नहीं मानता कि ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुमा ब्राह्मण कहलाता है या ब्राह्मणकुल में पैदा होने पर व्यक्ति ब्राह्मण होता है। यहां जाति को जन्मना नहीं, कर्मणा मना गया है कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वहस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥' अर्थात् मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय, कर्म से वैश्य और कर्म से शूद्र होता है । ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म का आचरण करे, जो सत्यवादी हो, अहिंसक हो, अकिंचन हो' और जिसमें रागद्वेष न हो, भय न हो। हमारा समाज जाति-प्रथा में, राग-द्वेष में, १. उत्तराध्ययन २५.३१ २. उत्तराध्ययन २५.३० ३. उत्तराध्ययन २५१२१ ४. उत्तराध्ययन २५।२२-२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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