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________________ अंधविश्वास एवं मिथ्या-मान्यताओं के निवारण में नारी की भूमिका / ३१३ अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है, और कलह का कारण बन जाती है। प्राज यदि नारीसमाज में जागति उत्पन्न हो जाए और जैसा मैनासुन्दरी ने, चन्दना ने, अंजना ने कदम उठाया था वैसी धारणा कर ले तो निश्चित ही एक स्वस्थ समाज की कल्पना साकार हो सकती है। एक समय ऐसा भी पाया कि नारी हीन.दीन घोषित कर दी गई पर उस बीच में भी नारी ने अपनी बौद्धिक विचारधारा के बल पर पुरुषों के भी छक्के छुड़ा दिये । सांस्कृतिक वातावरण एवं सामाजिक क्षेत्र के विकास में नारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कुण्ठानों से परे होकर नारी ने विश्व-क्षितिज पर मिथ्या मान्यताओं को समाप्त किया। साधु जीवन को स्वीकार करके नारी ने अपनी गरिमा को बढ़ाया। आज हमारी श्रमण संस्कृति में जितने श्रमण संघ हैं, उन सभी में नारी श्रमिणों की संख्या, आर्यिकानों की संख्या, ब्रह्मचारिणी बहनों की संख्या अत्यधिक देखी जा सकती है। यह इसलिए नहीं कि उन्हें परिवार में कष्ट था, समाज में दुःख था या नारी के रूप में उचित सम्मान नहीं मिला था। अपितु वे इस कार्यक्षेत्र में इस भावना को लेकर उतरी हैं कि आज हमारे समाज में जो सामाजिक क्रान्ति पुरुष वर्ग नहीं ला सकता है वह सामाजिक क्रान्ति हम धार्मिक क्षेत्र में उतर कर नारी में आस्था के, श्रद्धा के एवं विश्वास के अंकूर पैदा कर ला सकते हैं। समाज में जो कुदेव, कुगुरु और कुशास्त्र की प्रथा प्रचलित है उसे यदि कोई मिटा सकता है तो घर में रहने वाली गहिणी मिटा सकती है। प्राचार्य जिनसेन ने आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले यह बात स्पष्ट कर दी थी कि तप, साधना एवं व्रत आदि करने में और मिथ्या मान्यतामों को दूर करने में नारियाँ अधिक आगे हैं। स्वयंप्रभा विपुलमति ने गहिणी-धर्म का पालन करते हुए परिवार में धर्म के अंकुर अंकुरित किये । प्राकृत कथानकों में एक कथानक यह है कि एक पत्नी अपने पति-अपनी सास एवं श्वसुर को अधिक उम्र का होते हुए भी बहुत कम उम्र का बतलाती है। श्वसुर क्रोधित होते हैं, पर वह उनकी मिथ्या मान्यताओं का खण्डन करती हुई कहती है-जो व्यक्ति जितनी संस्कारी, जितनी उम्र से हुआ है वह उतनी ही उम्र का है । कहने का तात्पर्य यह है कि संस्कार से व्यक्ति अच्छा बनता है और उसी से उसकी उम्र नापी जाती है । एक मनुष्य था, जिसके दर्शन करने से भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। एक बार राजा को भी खाना प्राप्त नहीं हुआ तब वह राजा उस व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुना देता है । उस प्रसंग में सजायाफ्ता व्यक्ति कहता है-मेरा मुख देखने से किसी को भोजन नहीं प्राप्त होता है परन्तु राजा का मुख देखने से मुझे मृत्युदंड भोगना पड़ रहा है। यह उदाहरण अंधविश्वास का है। कामायनी में एक हृदयगत भावना इस प्रकार है तुम भूल गये पुरुषत्व मोह, कुछ सत्ता है नारी की। समरसता सम्बन्ध बनी, अधिकार और अधिकारी की। अंधविश्वास को कुप्रथा, कुरीतियों एवं अशुभ विचारों की संज्ञा दी जाती है। अंधविश्वासों में जादू टोना मंत्र-तंत्र विशेष रूप से आते हैं जिन्हें आज भी समाज में देखा जाता है । यदि कोई बुरा कार्य हुआ तो मंत्र तंत्र की ओर हमारी दृष्टि चली जाती है, पर इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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