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________________ चतुर्थ खण्ड / ३१२ समाज में नई जागृति पैदा की और कुन्दकुन्द की माता ने कुन्दकुन्द को महान सिद्धान्तवादी एवं अध्यात्मवादी बना दिया। ___ मैनासुन्दरी अंधविश्वास एवं मिथ्या मान्यताओं को तोड़ती है। मैनासुन्दरी कर्मवादी है और सुरसुन्दरी भाग्यवादी है। मैना से जब यह कह दिया जाता है कि-बेटी ! तेरा विवाह एक कोढ़ी से तय कर दिया गया है, तब वह कहती है-मां-बाप केवल विवाह करते हैं, उसके बाद तो कन्या का अपना कर्म ही काम आता है। पिताजी ! जीव कर्म से ईश्वर होता है, कर्म से रंक होता है। जो अपने ललाट पर लिखा है उसे कौन मिटा सकता है। वह विधि का विधान है । मैना अपने अन्तःकरण से धर्मनिष्ठ है। वह समाज के लिए एक आदर्श है जो यह दिखला देना चाहती है कि राजा भी कभी रंक हो सकता है। दुःखी भी कभी सुखी हो सकता है। भारतीय समाज में नारी कभी क्रीत दासी भी रही। वह कभी चेटी, दासी, लोढी, वादी, गोली, दूती, सेविका एवं धाय आदि के नामों से जानी जाती थी। परन्तु उसमें सेवा एवं धार्मिक भाव सदैव विद्यमान रहा। समाज में एक अोर अनेक प्रकार की बौद्धिक विचार वाली नारियाँ हैं तो दूसरी ओर अंधविश्वासों से युक्त नारियाँ भी हैं। हमारे समाज में मूल रूप से जादू टोना, सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन व मंत्र एवं तंत्र प्रचलित हैं। पर ये सभी इस छोटी सी पंक्ति से निराधार सिद्ध हो जाते हैं 'मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई ।' वेदों में नारियों के सोलह रूप बताये हैं, जो ज्ञान और साधना को अपनाती थीं। लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, वैदिक ऋचाओं में प्रसिद्ध हुईं। जिन्हें समाज का उच्च आदर्श प्राप्त हा उन्होंने मिथ्या मान्यताओं से परे होकर ब्रह्मसाधना पर विशेष बल दिया। रामायण, महाभारत की प्रादर्श नारियाँ उस युग की गाथा को कहती हैं, मीरा समाज के बंधनों को तोड़ देती है। दुर्गावती, चांद बीबी, ताराबाई, अहिल्याबाई, झांसी की रानी क्रान्ति की शिक्षा देती हैं। नारी का कर्तव्य परिवार को सूखी बनाने में सहायक होता है। बुद्ध और महावीर के बाद अंधविश्वासों एवं मिथ्या मान्यताओं से लड़ती नारियां देखी जा सकती हैं। बुद्ध की मौसी के साथ पांच सौ नारियों ने दीक्षा ली। धर्मप्रचार किया, विम्बसार की रानी क्षेमा, श्रेष्ठिपुत्री भद्रा, कुण्डलकेसा, आम्रपाली, विशाखा आदि ने अपने समय में क्रान्तिकारी कदम उठाया। विशाखा, बसंतसेना आदि ने समाज को नई दिशा दी और नारी के लिए पतिव्रत धर्म के साथसाथ त्याग तपस्या को बल मिला। नारी को शिक्षित करने का अर्थ है पुरुष को शिक्षित करना, परिवार को शिक्षित करना, कुटुम्ब को शिक्षित करना, समाज को शिक्षित करना। शिक्षा के अभाव में नारी अंधविश्वासों में जकड़ जाती है । वह कभी जादू टोना कराती है, कभी ताबीज बांधती है, कभी डोरा-डंगा बांधती है, और कभी मंत्र और तंत्र में लीन हो जाती है। यह सब इसलिए करती है कि शायद इससे कुछ प्राप्ति हो जाए। परन्तु सचाई यह है कि नारी इन अंधविश्वासों में पड़कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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