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________________ चतुर्थ खण्ड / २७४ प्राचार्य रविषेण सबसे प्रथम पुराणकार हैं जिन्होंने ६७८ ए. डी. में पद्मपुराण की रचना प्रस्तुत की थी। अठारह हजार श्लोक प्रमाण पद्मपुराण में राम का जीवनचरित्र निबद्ध है जो ६३ शलाका पुरुषों में से एक हैं । ९वीं शताब्दी के प्रारम्भ में जैन आचार्य जिनसेन एवं गुणभद्र हुये जिन्होंने संस्कृत भाषा में प्रथम महापुराण की रचना की थी। महापुराण के दो भाग हैं. एक आदिपुराण एवं दूसरा उत्तरपुराण । प्रादिपुराण प्राचार्य जिनसेन की कृति हैं और उत्तरपुराण आचार्य गुणभद्र की रचना है । गुणभद्र आचार्य जिनसेन के ही शिष्य थे। महापुराण में २४ तीर्थंकर १२ चक्रवर्ती ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण एवं ९ बलभद्रों के जीवन का विस्तृत वर्णन दिया गया है। इसी शताब्दी में प्राचार्य जिनसेन द्वितीय हये जिन्होंने १२ हजार श्लोक प्रमाण हरिवंशपुराण की रचना की। हरिवंशपुराण में २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ ही श्रीकृष्ण, बलराम एवं पाण्डवों की कथा वर्णित है। यह एक प्रकार से जैन महाभारत है। १२वीं शताब्दी में महाकवि असंग ने शान्तिनाथ पुराण की स्वतंत्र रूप से रचना की। १५वीं शताब्दी में होने वाले भट्रारक सकलकीर्ति ने आदिनाथ पुराण एवं उत्तरपुराण जैसे पुराणों की रचना करके पुराणसाहित्य के विकास में और अधिक योग दिया। भट्रारक सकलकीर्ति के शिष्य महाकवि ब्रह्म जिनदास ने हरिवंशपुराण एवं पद्मपुराण की रचना करके पुराणों की लोकप्रियता में वृद्धि की । ऐसा लगता है कि उस समय पुराणों का पठन-पाठन खूब जोरों पर था। इसलिये प्रत्येक विद्वान् संस्कृत में पुराण लिखने की ओर झुका हुआ था। सन् १४९८ में ब्रह्म कामराज ने जयकुमारपुराण की रचना समाप्त की थी। इस पुराण में १३ सर्ग हैं। सन् ५१८ में नेमिदत्त ने नेमिनाथ पुराण की रचना की थी। इस पुराण में १६ अधिकार हैं तथा भगवान नेमिनाथ का जीवनचरित निबद्ध है। १६वीं शताब्दी में भट्टारक शुभचन्द्र हुए जो संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् थे। उन्होंने पद्मनारायण एवं पाण्डवपुराण नामक दो पुराणों की रचना की थी । १७वीं शताब्दी में भट्टारक धर्मकीति हए जिन्होंने पद्मपुराण की रचना सन १६१२ में समाप्त की। इसमें २४ अधिकार हैं। भट्टारक वादिभूषण ने पाण्डवपुराण एवं पद्मपुराण की रचना की थी। इसी तरह भट्टारक श्रीभूषण, जो विद्याभूषण के शिष्य थे, पाण्डवपुराण एव शान्तिनाथ पुराण की रचना करने में सफल हुए । इसी १७वीं शताब्दी में होने वाले भट्टारक चन्द्रकीति ने आदिनाथपुराण की रचना की थी। राजस्थान के बैराठ नगर में भट्टारक सोमसेन ने पद्मपुराण की रचना की, इसे रामपुराण भी कहा जाता है। इसमें २४ अधिकार हैं जिनमें राम का जीवनचरित निबद्ध है । भट्टारक विद्याभूषण के शिष्य भट्टारक चन्द्रकीति ने तीन पुराणों की रचना की जिनके नाम हैं-ग्रादिपुराण, पद्मपुराण एवं पार्श्वपुराण । सन् १९५६ (?) में अरुणमणि ने जिहानाबाद में अजितपुराण की रचना की थी। संस्कृतभाषा में पुराण लिखने वालों को सम्भवतः ब्रह्म कृष्णदास अन्तिम विद्वान् थे जिन्होंने सन् १६१७ व १६२४ में विमलपुराण एवं मुनिसुव्रतपुराण की रचना की थी। जैनाचार्यों द्वारा संस्कृत में अध्यात्म साहित्य भी खूब लिखा गया । इस प्रकार के साहित्य में आत्मचिन्तन, मनन, ध्यान, अनुप्रेक्षा प्रादि विषयों पर विवेचन रहता है। जगत् की वास्तविकता को बतलाने वाला अध्यात्मसाहित्य जैन समाज में बहुत ही लोकप्रिय साहित्य माना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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