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चतुर्थ खण्ड / २६८ भरे होंगे, वजनी होंगे, लक्ष्य तक पहुंचने में वे उतने ही बाधक होंगे । विचारशून्य होने पर लक्ष्य तक आसानी से पहुँचा जा सकता है फिर किसी पकड़ की आवश्यकता नहीं होती। पकड़ तो तभी तक है जब तक विचारों का बोझा सिर पर लादे हए हम बढ़ते जाते हैं। विचारहीन प्राणी घेरे में घिरा हुआ है जबकि विचारशून्य प्राणी घेरे को काट चुका होता . है। हमें अपने भीतर विचारों के बोझ को मुक्त करना होगा । तभी हम जीवन के अर्थ को पा सकते हैं। यही अभीष्ट है।
-मंगलक्लश ३९४ सर्वोदय नगर, आगरा रोड,
अलीगढ़-६०२००१
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