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________________ विचार और हम । प्रो० संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र' मैं अपनी बात एक घटना से शुरु करूगा। एक शाम जब गुलाबी सूरज सागर के गहरे तल में डूबने जा रहा था, उस दार्शनिक को बड़ा अच्छा लगा। रह-रह कर आकाश में अरुणिमा के बने दृश्य उसे लुभाने लगे। कलरव करते पक्षी, शीतल बहती बयार सभी का सभी मनोहारी था उसके लिए। वह उसमें डूब जाना चाहता था । बाल के बने ढेर पर वह बैठ गया, यह सब दृश्य देखने को। तभी उसे न जाने क्या सूझा, वह सोचने लगा--क्यों न मैं इस रम्य संध्या के मनोहारी दृश्य देखने के लिए अपनी पत्नी को निमंत्रण दे दूं। पर पत्नी तो उससे बहुत दूर थी। उसके लौटते तो प्रहर बीत सकती थी। वह क्या करे कि पत्नी को संध्या के अमूल्य दृश्य दिखा सके-रह-रह कर विचारों का युद्ध उसके मन को व्यथित किए जा रहा था। वह दार्शनिक था तो कुछ न कुछ उपाय उसे खोज ही लेना था। सो उसने वैसा ही किया। एक खाली लिफाफे को वह कहीं से ले आया और खोल दिया उसका एक हिस्सा उस रम्य संध्या के मनोहारी दृश्य को भरने के लिए। डूबते हुए गुलाबी सूरज की अद्भुत किरणों को उसने भर दिया लिफाफे में । और फिर लिफाफा बंद कर भेज दिया पत्नी के नाम उसने । पत्नी लिफाफा पाते ही खिल उठीं । सोचा पति का पत्र पाया है न जाने क्याक्या लिखा होगा उन्होंने मेरे लिए। लिफाफे को खोल दिया उसने । पर वह तो खाली का खाली था तो भरा कैसे होगा। यह देख पत्नी आगबबूला हो गयी। इतना भीषण मजाक उन्हें मेरे साथ करने की क्या जरूरत थी -मानो क्रोध में वह पागल हुई जा रही थी। सोचा, पति तो दार्शनिक हैं जरूर कोई दर्शन दिया होगा उन्होंने इस लिफाफे में। दिमाग ठंडा किया और खाली लिफाफे का रहस्य खोजने लगी वह । रहस्य खोजने में जो कुछ हाथ लगेगा, वह सभी कुछ तुम्हारे भीतर का होगा। लिफाफा चाहे खाली हो या भरा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लिफाफा तो प्रतीक है, बिम्ब है, स्वप्न है, मात्र सूचना लेने-देने का साधन है। लेकिन जो कथ्य के भीतर तथ्य छिपा है, वह, अनुभूत किया हुमा तथ्य कथ्य तक पहुँचते-पहुँचते असत्य की पत्तों में बंध जाता है। फिर चाहे रम्यसंध्या का दृश्य हो या किसी अन्य प्रहर का, कोई फर्क नहीं पड़ता उसमें । जो कहा या सुना गया, यह सभी अछूता हो जाता है अनुभूत से। दार्शनिक ने शायद इसीलिए अनुभूत के करीब खाली लिफाफा ही समझा होगा, इसीलिए लिफाफे में उसने उस रम्य संध्या को डुबोया होगा। आज कितनी बड़ी मजाक में हम जी रहे हैं । हम लिफाफों को भरते चले जा रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा भरे हुए लिफाफों को अच्छे से अच्छे दाम में भेजा जा रहा है । समय और साधन दोनों का अपव्यय हो रहा है। इस पर कोई ध्यान नहीं है। हम जानते हैं कि खाली लिफाफे कम से कम दाम में चले जाते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं सोचते । विचार जितने ज्यादा धम्मो दीयो संसार समुद में वीही दीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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