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________________ मानव की भी यही स्थिति है। वह सद्गुणों के सुन्दर फल-फूलों से युक्त भी होता है तो दुर्गुणों के शूल भी दूसरों को चुभाता रहता है । हम देखते हैं, वर्तमान में दोनों ही प्रकार के व्यक्ति हमें मिलते हैं। किन्तु सोचना यह है, हमारे लिए आदरणीय, वंदनीय, अर्चनीय, अभिनन्दनीय कौन हो सकते हैं ? इसका स्पष्ट उत्तर यही होगा कि जो हमें सद्गुणों की सौरभ लुटाते हैं, आत्मज्ञान का रसास्वादन कराते हैं । ऐसे ही प्रादर्श गुणों के धारकों में हमारे पूज्य गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. . "अर्चना" आते हैं। आपकी विशेषताओं के संबंध में बहुत कुछ जानते हुए भी उनका वर्णन करने में अपने प्रापको असमर्थ पाता है। केवल सिन्ध में बिन्द मात्र ही व्यक्त कर सकूँगा। मेरे प्रति स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव शासनसेवी स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म. सा. एवं श्रमणसंघीय युवाचार्य, बहुश्रुत, पण्डितरत्न, मनीषिप्रवर श्री मिश्रीमलजी म. सा. की 'ब्रजमधुकर' की अत्यधिक कृपा थी। जब मर्जी होती, मैं सेवा में पहुँच जाया करता था। दुर्भाग्य से स्वामीजी म. सा. का धलिया में, युवाचार्यप्रवर का नासिक में आकस्मिक निधन हो जाने से मेरी स्थिति पर-कटे पक्षी जैसी हो गई । मैं मकान के ऊपर से नीचे तक पाने में भी अपने को असमर्थ पाता था। लेकिन पूज्य गुरुणीजी म. सा. की सेवा में मेरे बड़े भाई सा. श्री सायरमलजी लेकर आये । गुरुणीजी ने बड़ो आत्मीयता के साथ मुझे संसार की यथार्थ स्थिति समझाई और अपना मंगलपाठ सूनाया। मैं अपने आप में बहुत ही हलकापन महसूस करने लगा। अब मैं जिस प्रकार गुरु म. सा. की सेवा में पहुँचा करता था, उसी प्रकार समयसमय पर गुरुणीजी म. सा. की सेवा में पहुँच जाता है। सन् १९८५ दिसम्बर में महासतीजी म. सा. इन्दौर स्नेहलतागंज में विराज रहे थे । उस समय मैं म. सा. के दर्शनार्थ पहँचा। मेरे से पहले ही माननीय पंडित शोभाचंद्रजी भारिल्ल, श्रीयुत डॉ. छगनलालजी शास्त्री एवं डॉ. तेजसिंहजी गौड़ वहाँ उपस्थित थे। प्रसंग चल रहा था साहित्य-प्रकाशन का। उसमें महाराज सा. श्री की विहार-यात्रा की पूर्व प्रकाशित पुस्तक "हिम और प्रातप" के दूसरे संस्करण के प्रकाशन की चर्चा थी। श्रीमान् डॉ. तेजसिंहजी गौड़ ने कहा कि इसके अतिरिक्त हम पूज्य महासतीजी म. सा. का अभिनन्दनग्रंथ भी क्यों न प्रकाशित करें। मैं तो पहले से ही चाहता था, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जैसे ही गौड़ सा. के विचार सुने तो वहाँ पर उपस्थित पंडितवर्ग, सतीमंडल-सभी ने एक ही स्वर में प्रसन्नतापूर्वक समर्थन दिया। भाई सा. श्रीमान् सायरमलजी, जो पूज्य गुरुदेव की एवं पूज्य गुरुणीजी म. सा. की अपूर्व सेवा करते रहे हैं और साध्वीजी श्री हेमप्रभाजी म. के संसारपक्षीय बड़े भ्राता भाई प्रेमचन्द ने भी पूरा समर्थन दिया। तभी से इस कार्य का शुभारंभ हुआ । मुझे हार्दिक संतोष एवं प्रसन्नता है कि विद्वद्वर्ग ने, सतीवन्द ने इस कार्य को प्रचुर बल दिया तथा श्रावकगण ने इस कार्य में तन-मन-धन से पूर्ण सहयोग किया। मेरी यही हार्दिक आकांक्षा है, मंगल-कामना है, परम समादरणीया गुरुणीजी म. सा. की कृपा, शुभ दृष्टि एवं सात्त्विक स्नेह सदैव मुझे प्राप्त रहे, मेरे लिए दिशादीपक रहे । मुझे इस बात की और भी अधिक प्रसन्नता है कि पूज्य महासतीजी म. सा. की दीक्षा अपने पूज्य पिताश्री मांगीलालजी म. सा. के साथ मेरी जन्मभूमि नोखा चांदावतां में आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन / २६ Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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