SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो रहे हैं। पूज्य गुरुणीजी म. सा. की प्राज्ञा एवं सुश्रावकों के प्राग्रह से आगम-प्रकाशन समिति एवं मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन समिति के अध्यक्ष पद पर आपके निर्देशन में ही कार्यरत हूँ। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपकी शुभ छत्र-छाया में हम प्रगतिपथ पर अग्रसर होते रहेंगे और आत्म-विकास, समाज-सुधार, साहित्य-सर्जन एवं मानव-सेवा आदि पुण्य एवं निर्जरा के उत्तम कार्य करते रहेंगे। मुझे समय-समय पर एवं मीटिंगों के अवसर पर महासतीजी म. की सेवा में उपस्थित होने का अवसर मिलता रहता है। उनके साध्वाचार से तथा सरलता, विनम्रता, सहज, शुद्ध एवं मधुर व्यवहार से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ। जब जब मैं सेवा में उपस्थित होता रहा हूँ, स्थानीय लोगों द्वारा उनके साधनामय जीवन की चमत्कारपूर्ण चर्चाएँ सुनता रहता हूँ। उनकी बातों पर विश्वास तो होता ही है किन्तु स्वयं का अनुभव विश्वास को और भी दृढ़ कर देता है। १९८७ मार्च में मैं गुरुणीजी म. सा. के दर्शन हेतु नागदा पहुँचा । भावना सिर्फ एक ही दिन रहने की थी, किन्तु पूज्य गुरुणीजी म. सा. ने फरमाया, पाप ३० मार्च की टिकिट ही करवाइये । मेरी पत्नी भी साथ में थी। इतने समय मैं किसी साधु-संत के पास नहीं रहा। मुझे इन्कार करने में न जाने क्यों संकोच लगा। मैंने कहा-अच्छा, मैं २८ मार्च की टिकिट करवा लेता हूँ। मैंने अपने साथ वाले भाई श्री नरेशजी को टिकिट के लिए चित्तौड़ कार लेकर रवाना होने का कहा । वे खाचरौद स्टेशन होते हुए जा रहे थे । वहाँ (खाचरौद स्टेशन पर) तलाश करने पर ३० मार्च का टिकिट उपलब्ध था और अंत में हम ३० मार्च को ही रवाना हो सके। सप्ताह भर विहार में भी साथ रहे । तब जो आध्यात्मिक प्रानन्द हमें प्राप्त हुआ, वह जीवनभर स्मरण रहेगा। ___ मैं अपने हृदय से यह चाहता हूँ कि मुझे पूज्य महासतीजी म. सा. के दर्शनों के साथ-साथ सेवा का लाभ भी मिलता रहे । परम श्रद्धेया महासतीजी म. सदा जन-जन द्वारा वन्दनीय एवं अभिनन्दनीय बनी रहें। आपकी साधना समीचीन रूप से चलती रहे, उत्तरोत्तर विकसित, समुन्नत एवं संवर्धित होती जाए। आप जन-जन को प्रतिबोधित करते हुए दीर्घकाल तक भारत की इस पुण्य धरा पर भगवान् महावीर का सन्देश दिग-दिगन्त तक प्रसारित करते रहें । मेरी, मेरे सभी पारिवारिक जनों की यही मंगल-कामना है। सम्मानांजलि जेठमल चोरड़िया, बेंगलौर (नोखा) इस विश्व रूपी बगीचे में नाना प्रकार के पेड़ पौधे उगते रहते हैं। कई फलवान होते हैं, कई फलवान होते हैं और कइयों पर शूल भी होते हैं। वे यथासमय विकसित होकर विनाश को भी प्राप्त हो जाते हैं। वस्तुओं का बनना और बिगड़ना यह अनादिकालीन रीति है। आई घड़ी प्रथम खण्ड / २५ चरण कमल के वंदन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy