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________________ ध्येय-प्राप्ति का हेतु 'भावना' 0 डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' जिससे आत्मा भावित होती है, वह भावना कहलाती है। चित्तशुद्धि, मोहक्षय तथा अहिंसा-सत्य आदि की वृत्ति को टिकाने के लिए प्रात्मा में जो विशिष्ट संस्कार जागत किए जाते हैं, उसे भावना कहते हैं। जिसका जिस प्रकार से जो-जो संवेदन होता है, उसको उसी प्रकार से वैसा ही अनुभव होने लगता है। सदा अमृत रूप में चिन्तन करने से विष भी अमृत बन जाता है। मित्रदष्टि से देखने पर शत्र भी मित्र रूप में परिणत हो जाता है। रागद्वेषयुक्त गमन-निरीक्षण-जल्पन आदि जितने भी काम संसार के हेतु हैं, वे ही रागद्वेष रहित हों तो मुक्ति के हेतु बन जाते हैं। प्राणी स्नेह, द्वेष या भय से अपने मन को बुद्धि द्वारा जहाँ-जहाँ लगाता है, मन वैसा ही अर्थात् स्नेही, द्वेषी या भयाकुल बन जाता है। शरीर के अवयवों का कमाण्डर 'मस्तिष्क' है। उसी प्रकार जीवन की सारी प्रवत्तियों या क्रियाओं का कमाण्डर 'भाव' है। महाकवि सूरदास के पास आँखें नहीं थीं किन्तु भक्तिरस के सुन्दर भावों ने उन्हें कविर्मनीषी ही नहीं अपितु सगुण संत बना दिया। अष्टावक्र का शरीर आठ अंगों से टेढ़ा-मेढ़ा और बेडौल था परन्तु अपनी अध्यात्मशैली से वह आदरास्पद हो गए। किसी भी क्रिया के पीछे सद्विचार या शुभभाव का योग होता है तो उसमें माधुर्य पा जाता है। क्रिया को भोजन कहें तो भाव को नमक कह सकते हैं। जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ शुभ भाव अनिवार्य है। भाव रसायन हैं। थोड़ी सी मात्रा में सेवन किया गया भाव-रसायन आत्मा को बड़े-बड़े रोगों से-काम क्रोधादि से मुक्ति दिलाकर स्वस्थ-सबल बना देता है। क्रिया के साथ डाला गया भावों का थोड़ा सा जामन भी चित्तरूपी पात्र में शुद्ध धर्मसंस्काररूपी दही जमा देता है और तभी उसमें शुभगति अथवा मोक्षरूपी मक्खन प्राप्त किया जा सकता है। परिणाम ही बन्ध हैं, मोक्ष हैं। परिणाम की धारा ही आत्मा की दशा को नापने-मापने का थर्मामीटर है। यदि परिणाम की धारा अशुभ दिशा की ओर प्रवहमान है तो हमारी आत्मा भी अशुभगामी है । यदि वह शुभ की ओर उन्मुख है तो आत्मा शुभगामी होगी ही। जिसकी जैसे भावना होती है वैसी ही सिद्धि होती है। जैसे तंतु (तार) होते हैं वैसा ही कपड़ा बन जाता है। मन्त्र, तीर्थ, ब्राह्मण, देवता, नैमित्तिक, औषधि और गुरु इन सबमें जिसकी जैसी भावना होती है, प्रायः वैसी ही सिद्धि-फल की प्राप्ति होती है। खराक के अनुसार गाय-भैंस का दूध होता है। मेह अर्थात् वर्षा के अनुरूप खेती होती है। माल के अनुसार लाभ होता है और भावना के अनुसार पुण्य होता है । मरते समय जो भावना होती है वैसी ही गति मिलती है। हिन्दी कहावत है कि 'दानत जैसी बरकत' अर्थात जिसकी दानत बुरी, उसके गले छुरी । शायर अकबर कह उठता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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