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________________ Jain Education International 1 मानव के चित्त की समस्त भावनाओं और क्रियाओं को क्लेशहेतुक और प्रक्लेशक इन दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, क्योंकि किसी भावना अथवा क्रियाका साक्षात् अथवा परम्परया यही दो परिणाम हो सकते हैं ये भावनाएँ अनासक्तिपूर्वक अथवा परम शिव (परमेश्वर) को समर्पित होकर नहीं होतीं । उस स्थिति में उन्हें अक्लेशहेतुक कहा जाएगा। ऐसी का संचय नहीं हुआ करता।' और क्रियाएँ सम्पूर्णतया सम्पन्न होने पर क्लेशहेतुक भावनाओं और क्रियाओं अस्मिता राग-द्वेष मौर क्लेशहेतुक भावना एवं कर्मों को योगपरम्परा में अविद्या अभिनिवेश, इन पाँच स्थितियों में विभक्त किया जाता है, तथा इन पाँचों का मूल अविद्या है, ऐसा स्वीकार किया जाता है। क्योंकि समस्त क्रियाएँ और उनके भी लोभ क्रोध मोह श्रादि मनोभाव की उत्पत्ति श्रविद्या श्रादि के द्वारा ही होती है, वह ही सबके मूल में रहा करती है। चित्तगत ये भावनाएं और क्रियाएं ही विविध अवस्थाओंों में परिणत होकर संचित होती हैं, उस अवस्था में इन्हें कर्माशय कहा जाता है। तथा ये प्रसुप्त तनु विच्छिन्न और उदार अवस्थाओं में संचित रहा करती है। जिस समय ये मनोभाव (अविद्या अस्मिता यादि चित्तवृत्तियाँ) बीज की भांति केवल शक्तिमात्र से चित्त में प्रतिष्ठित रहते हैं, उस स्थिति में इन्हें ही क्लेश- बीज कहा जा सकता है, कालान्तर में प्रालम्बन को प्राप्त करके ये ही प्रकट हुआ १. वैदिकपरम्परा में - कर्माशय एवं उनका भोग म. म. डॉ. ब्रह्ममित्र अवस्थी २. ३. क. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिगीषयेच्छतं समाः एवं त्ववि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे । ख. तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर । असतो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः । ग. ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः । अनन्ये नैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते । तेषमहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् । घ. अभ्यासेप्यसमर्थोऽसि मत्कर्म परमो भव । मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥ अविचास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः प्रविद्या क्षेत्रमुत्तरेषाम् । -गीता १२.१०. श्रविद्याक्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नो दाराणाम् । For Private & Personal Use Only - ईश. २. , गीता ३. १९. गीता १२.६-७. - यो. सू. २.३-४. यो. सू. २.४. www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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