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________________ चतुर्य खण्ड | २२२ ३. बाघेली विष्णुप्रसाद कंवरी (र० का० सं० १८२१ के आसपास) ये रीवां के महाराजा श्री रधुनाथसिंह की पुत्री और जोधपुर के महाराजा श्री जसवंतसिंह के छोटे भाई महाराज श्री किशोरसिंह की रानी थीं। इनका विवाह सं. १५२१ में हुआ था। इनके लिखे अवधविलास, कृष्णविलास, और राधाविलास ग्रंथ उपलब्ध हैं । ये रामस्नेही संप्रदाय के रामदास के शिष्य दयाल की शिष्या थीं। इनकी भाषा राजस्थानी है जिसमें ब्रजभाषा का सा मिठास है। ४. रत्नकुंवरी (र० का० सं० १९०० के आसपास) कवयित्री रत्नकुंवरी जारवन निवासी भाटी लक्ष्मणसिंह जी की पुत्री, कवयित्री प्रतापकुंवरी की भतीजी एवं ईडर के महाराजा प्रतापसिंह जी की महारानी थी। इनके लिखे पद शांत और शृगाररस प्रधान हैं। रंगीले राम ने कवयित्री का मन मोह लिया है। रातदिन वह उन्हें ही स्मरण करती है। उन्हीं का ध्यान करती रहती है। उनके भक्तिभाव से प्रेरित एक पद का रसास्वादन कीजिये मेरो मन मोयो रंगीले राम । उसकी छवि निरखत ही मेरो विसर गयो सब काम ॥ अष्ट पहर मेरे हिरवे बिच, आन कियो निज धाम । रतन कुवर कहे उनको पलक पलक ध्यान करू नित शाम ॥ ५. रूपदेवी (२० का० सं० १९०८ से १९२४) कवयित्री रूपदेवी शाहपुरा निवासी अमरसिंह की पुत्री और अलवर के राजा विनयसिंह की रानी थी। इनके लिखे तीन ग्रंथ रूपमंजरी, राम रास, रूप रुकमणीमंगल मिलते हैं। छंदों की दृष्टि से दोहा और चौपाई का प्रयोग अधिक मिलता है। इनका प्रकृति-चित्रण भी अनूठा है। अनुप्रासों की सुन्दर छटा कवयित्री के प्रत्येक पद को सुन्दर बना देती है, देखिये-- सब मिल रास रच्यो मझ रात । तट सरजू को तीर निकट अति, सहस सखा ले साथ ॥ घुघरू झनक झनकार सबद सुनि, चकित भयो ब्रह्म मुसकात। संकर शक्ति चकित चित आतुर निरखि सरूप रधुनाथ ॥ ६. जादेची प्रतापबाला (र० का० सं० १८९१ से १९७४) ये जामनगर के जाम श्री रिणमल जी की पुत्री और जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह की रानी थी । इनका जन्म सं. १८९१ व विवाह १९०८ में हुआ। रामस्नेही संप्रदाय की अनुयायी होने पर भी कृष्ण के प्रति भी समान आदर भाव था। इन्होंने अपने अधिकांश पद चतुर्भुज श्याम को सम्बोधित करके लिखे हैं वारी थारा मुखड़ा री स्याम सुजान । मन्द मन्द मुख हास्य विराजे कोटिक काम सजान । इनकी भाषा में ठेठ राजस्थानी का मिठास है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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