SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 766
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यकालीन राजस्थानी काव्य के विकास में कवयित्रियों का योगदान / २२१ २. रामकाव्यधारा की कवयित्रियाँ जिस प्रकार तुलसी ने अपने प्राराध्य राम के चरणों में अपनी काव्यांजलि अर्पित की वैसे ही यहाँ की कवयित्रियों ने भी राम के चरित्र को लेकर अपनी भावाञ्जलि चढ़ायी। यहाँ नारी ने सीता को केन्द्रबिन्दु मानकर अपने हृदयस्थ भावानुरूप रामकाव्यविषयक ग्रन्थों का सृजन कर रामभक्तिभावना को उत्तरोत्तर आगे बढ़ाने में विशेष सहयोग प्रदान किया। राधा और कृष्ण के प्रति भक्तिभाव दर्शाने में भी इन कवयित्रियों ने उदारता का परिचय दिया। इस काव्यधारा की प्रमुख कवयित्रियाँ निम्नलिखित हैं १. प्रताप कुवरी (र० का० सं० १८७३ से १९४३) प्रताप कुंवरी का जन्म जोधपुर के जाखण गांव निवासी भाटी गोयन्ददास के घर वि० सं० १८७३ में हुआ और निधन सं० १९४३ में। बचपन से ही ये बड़ी कुशाग्रबुद्धि की थीं। इनका विवाह जोधपुर के अधिपति मानसिंह जी के साथ हुआ था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैंज्ञानसागर, ज्ञानप्रकाश, प्रताप पच्चीसी, प्रेमसागर, रामचन्द्रनाममहिमा, रामगुणसागर, रघुवरस्नेहलीला, रामप्रेमसुखसागर, रघुनाथजी के कवित्त, प्रतापविनय, हरिजसविनय आदि । कवयित्री की भाषा सरल, सुबोध और सरस राजस्थानी है। छंद, अलंकार तथा राग रागनियों का अच्छा ज्ञान होने के कारण इनके पदों में लालित्य पा गया है। भावों की गहराई से भरा प्रताप कुंवरी का एक पद देखिये सियावर लाज हाथ है तेरे । गहरा समन्द बीच है बेड़ा, कोउ सहाय न मेरे ॥ बाजत पवन कठोर दुसह अति, मन धीरज न धरे। टूटी नाव पुरानी जरजर, केवट दूर रहे रे॥ २. तुलछराय (र० का० सं० १८५० के आसपास) कवयित्री तुलछराय जोधपुर के महाराजा मानसिंह जी की उपपत्नी थी। इनके लिखे फुटकर पदों से यह ज्ञात होता है कि ये राम की अनन्य उपासिका थीं। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से राम काव्य-धारा की कवयित्रियों में तुलछराय का भी गौरवपूर्ण स्थान है । विरहानुभूति कवयित्री के पदों का शृगार है । वे सियावर से अपने दिल की बात सुनने का निवेदन करती हुई कहती हैं मेरी सुध लीजो जी रधुनाथ, लाग रही जिय केते दिन की सुनो मेरे दिल की बात, मो को दासी जान सियावर राखो चरण के साथ। तुलछराय कर जोर कहे, मेरो निज कर पकड़ो हाथ । धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीय है Hind i jamelibraryorg Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy