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________________ चतुर्थ खण्ड / २१२ (ग) नीतिकाव्य जैन काव्य की मूल प्रवृत्ति प्रोपदेशिक भावना है । संसार की प्रसारता,काया की नश्वरता, व्यसन-त्याग, क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग, तप का माहात्म्य, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रतों का धारण, भाव शुद्धि, दान की महत्ता, संयम की कठोरता प्रादि अनेक . नैतिक उपदेश संवाद, कक्का, मातृका, बावनी कुलक, हीयाली, बारहखड़ी प्रादि काव्यरूपों में दिये जाते हैं। संवाद में दो मूर्त-प्रमूर्त भावनाओं में कृत्रिम विरोध का झगड़ा खड़ा कर एकदूसरे को नीचा दिखाते हुए, शुभ संकल्प और धर्मतत्त्व की विजय दिखायी जाती है । कक्का, बावनी, बारहखड़ी आदि काव्यरूपों में देवनागरी लिपि के वर्णक्रम को आधार बनाकर, कोई न कोई नीति की बात कही जाती है। (घ) स्तुतिकाव्य इस वर्ग में जैन तीर्थंकरों, धर्माचार्यों, धर्मगुरुओं, विशिष्ट सन्त-सतियों प्रादि का गुणकीर्तन किया जाता है। तीर्थंकरों में ऋषभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी की स्तुति विशेषरूप से की गई है। विहरमानों की स्तुति में बीसी संज्ञक काव्यरूप लिखे गये हैं । तीर्थस्थानों की महत्ता में तीर्थमाला, चैत्य परिपाटी आदि काव्यरूप रखे गये। स्तुति काव्य के प्रमुख रूप हैं-स्तुति, स्तवन, स्तोत्र, सज्झाय, विनति, गीत, नमस्कार, चौबोसी, वीसी, तीर्थमाला आदि। जैन पद्य की तरह जैन गद्य भी काफी समृद्ध और विपुल परिमाण में मिलता है। यह गद्य दो रूपों में मिलता है- स्वतन्त्र मौलिक सृजन के रूप में और टीका तथा अनुवाद के रूप में । स्वतन्त्र गद्य के क्षेत्र ऐतिहासिक और कलात्मक गद्य के रूप में तथा टीकात्मक गद्य के क्षेत्र में टब्बा और बालावबोध के रूप में कई काव्य रूप विकसित हए । संक्षेप में उन्हें इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है : (क) ऐतिहासिक गद्य धार्मिक गद्य के साथ-साथ जैन विद्वानों ने ऐतिहासिक गद्य को भी प्रारम्भिक सहयोग दिया। इन विद्वानों ने गुर्वावली, पट्टावली, वंशावली, उत्पत्तिग्रन्थ, दफ्तरबही, ऐतिहासिक टिप्पण आदि विविध काव्य रूपों में इतिहास की महत्त्वपूर्ण सामग्री को सुरक्षित रखा । गुर्वावली में गुरु-परम्परा का विस्तृत और विश्वस्त चरित्र वर्णित रहता है। पट्टावली में गच्छविशेष के पट्टधर प्राचार्यों का जन्म, दीक्षा, साधनाकाल, विहार, मृत्यु आदि का विवरण तथा उनकी शिष्य-संपदा और प्रभावना का यथातथ्य चित्रण निहित रहता है। उत्पत्ति ग्रन्थ में किसी सम्प्रदाय विशेष की उद्भवकालीन परिस्थितियों का तथा उसके प्रवर्तन के कारणों आदि का वर्णन होता है । वंशावली में जैन श्रावकों की वंश-परम्परा का वर्णन दिया जाता है। दफ्तरबही एक प्रकार की डायरी शैली है, जिसमें रोजनामचे की भाँति दैनिक व्यापारों का विवरण लिखा जाता है । ऐतिहासिक टिप्पण एक प्रकार के स्फुट ऐतिहासिक नोट हैं जिन्हें व्यक्तिविशेष ने अपनी रुचि ने अनुसार संगृहीत कर लिया है। (ख) कलात्मक गद्य कलात्मक गद्य के वचनिका, ददावेत, सिलोका, वर्णक ग्रन्थ; बात प्रादि काव्यरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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