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________________ आज के युग में महावीर की प्रासंगिकता | २०३ मानकर अन्य सत्यांशों पर विचार नहीं करने का आग्रह हो जाता है। वस्तु के अनेक स्वरूपों में से किसी एक ही स्वरूप को सही मान बैठना ज्ञान नहीं प्रज्ञान है। इसी प्रज्ञान के कारण संसार में वाद पैदा होते हैं जो कदाग्रह के कारण बनते हैं। महावीर ने इन कदाग्रहों व झगड़ों को मिटाने के लिए "अनेकान्त" का विचार दिया है। उन्होंने बताया कि अपेक्षाकृत किसी सत्यांश को पूर्ण सत्य मानकर झगड़ना अज्ञान है। जैन वाङमय के एक कथानक में छह अन्धे प्रादमियों द्वारा हाथी के भिन्न-भिन्न अवयवों को स्पर्श कर हाथी की भिन्न-भिन्न कल्पना कर ली। किसी ने हाथी के दांत छकर उसे लकड़ी जैसा, किसी ने उसकी पूछ छूकर रस्सी जैसा, किसी ने टांग छकर खम्बे जैसा, किसी ने कान छुकर सूप जैसा, किसी ने सुंड छु कर साँप जैसा, और किसी ने पेट छकर दोवार जैसा बताया। आपस में झगड़ते रहे और एक दूसरे को झूठा कहते रहे। हाथी के एक अंग को ही हाथी समझा। सूझते आदमी ने बताया कि वे सभी आंशिक रूप से सही होने पर भी हाथी की जानकारी नहीं पा सके। यही हालत आज के संसार में व्याप्त है। अपनी-अपनी सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक मान्यताओं को लेकर लोग झगड़ रहे हैं। अनेकान्त की दृष्टि अपनायी जाय तो कलह व कदाग्रह के स्थान पर प्रेम व शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो जाय । अनेकान्त की दृष्टि से परस्पर सहयोग, सहकारिता, सद्भाव, उत्पन्न होता है जिससे विरोधी दिखने वाले तत्त्वों में भी सहअस्तित्व एवं एकता की भावना प्रकट होती है । अनेकांत के सिद्धांत को प्रतिपादित कर महावीर ने अज्ञान के अन्धकार को दूर करने का एक सबल अस्त्र संसार को प्रदान कर दिया। और अज्ञान से हटा कर ज्ञान की ओर अग्रसर होने का मार्ग बताया। इस प्रकार भगवान महावीर ने संसार में व्याप्त तीन बड़ी बुराइयों-अभाव, अन्याय व अज्ञान को दूर करने के लिए अपरिग्रह, अहिंसा व अनेकांत के अमोघ अस्त्र प्रदान किए। महावीर की यह देन अनोखी है, इसकी पालना से ही उपरोक्त बुराइयों का पलायन संभव हो सकता है। इसीलिए महावीर की प्रासंगिकता आज के सन्दर्भ में भी अविछिन्न रूप में है। ---४४८ रोड, सी, सरदारपुरा जोधपुर-३ (राजस्थान) 00 धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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