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________________ आगम का व्याख्यासाहित्य | १६१ विषय-प्रतिपादन-प्रस्तुत प्रागमों में धर्म, दर्शन, संस्कृति, गणित, ज्योतिष, खगोल, भूगोल, इतिहास आदि विषयों का समावेश है। इसलिए ये सभी आगम आध्यात्मिक, दार्शनिक, मांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं । आगम का व्याख्या सहित्य (1) नियुक्ति (ii) भाष्य, (iii) चूणि, (iv) टीका (v) टब्बा (vi) अनुवाद । (i) नियुक्ति--आगमों पर सर्वप्रथम व्याख्या नियुक्तिरूप में प्रस्तुत की गई थी "णिज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जत्ती।" अर्थात् सूत्र में जो अर्थ निबद्ध हो, वह नियुक्ति है। प्राचार्य हरिभद्र सूरि ने नियुक्ति की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है:--"निर्युक्तानामेव सूत्रार्थानां युक्ति:--परिपाट्या योजनम् ।" नियुक्ति प्रागम गाथानों पर संक्षिप्त विवरण है। नियुक्तियों का समय वि. सं. ४००-६०० तक माना गया है । अभी तक समय निर्णीत नहीं है। नियुक्तियों में गूढभावों को सरलतम शैली में प्रस्तुत किया गया है। प्रसंगवश धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, इतिहास आदि विविध विषयों का समावेश हो गया है। कुछ प्रसिद्ध नियुक्तियाँ (१) आवश्यक (२) दशवैकालिक (३) उत्तराध्ययन, (४) आचारांग (५) सूत्रकृतांग (६) दशाश्रुतस्कंध (७) बृहत्कल्प (८) व्यवहार (९) अोध (१०) पिण्ड (११) ऋषिभषित (१२) निशीथ, (१३) सूर्य (१४) संसक्त (१५) गोविंद (१६) और आराधना । नियुक्तियों का परिचय (१) आवश्यक नियुक्ति प्राचार्य भद्रबाहु ने ज्ञानवाद, गणधरवाद और निह्नववाद का संक्षेप कथन कर सामायिक के स्वरूप पर गम्भीर दृष्टि डाली है। इसमें शिल्प, लेखन एवं गणित आदि के विषयों का परिचय, व्यवहार, नीति एवं युद्धवर्णन, चिकित्सा, अर्थशास्त्र एवं अनेक उत्सवों का समावेश हो गया है। वंदन, ध्यान, प्रतिक्रमण का निक्षेप पद्धति से विवेचन किया है। प्रसंगवश सुन्दर सूक्तियाँ भी आगई हैं। जैसे "हयं णाणं कियाहीणं" "न हु एगचक्केण रहो पयाइ।" (२) दशवकालिक नियुक्ति -इस नियुक्ति ग्रन्थ में आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगनी और निवेदनी इन चार कथाओं के माध्यम से अहिंसा, संयम और तप का सूक्ष्म विवेचन किया है। श्रमणचर्या का सूक्ष्मता से विवेचन हुअा है। यथाप्रसंग धन-धान्य, रत्न और अनेकविध पशुओं का वर्णन किया है। धार्मिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोणों का भी सूक्ष्मता से विवेचन हुआ है। (३) उत्तराध्ययन नियुक्ति-इसमें उत्तर, अध्ययन, श्रुत, स्कंध की व्याख्या की गई है। गति और प्राकीर्ण का दृष्टांत देकर शिष्यों की विभिन्न दशा का वर्णन किया है। इसमें शिक्षाप्रद कथानकों की बहुलता है। इस नियुक्ति में गंधार श्रावक, तोसलि पुत्र, स्थूलभद्र, कालक, स्कंदलपुत्र और करकंडू आदि का जीवन संकेत है। धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only forteltbrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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