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________________ श्रमण का स्थल, जल- व्योम - विहार / १५५ गंगा-यमुना जैसी महानदियों को भी एक मास में अधिक से अधिक तीन वार पार कर सकते हैं । ' अपवादविधान वर्षावास में विहार करने के जितने अपवादविधान हैं उतने ही जलविहार या नौकाविहार के भी हैं । अपवाद-विधानों के मर्मज्ञों का यह चिन्तन है कि आत्मविराधना, संयमविराधना या श्रसमाधिभाव से बचने के लिए किये जानेवाले प्रयत्नों में जलविहार या नौकाविहार द्वारा होनेवाली असंख्यासंख्य अप्कायिक जीवों की विराधना भी द्रव्यहिंसा ही है । क्योंकि श्रमण का संकल्प जीवों की विराधना करने का नहीं है । बिना संकल्प के भावहिसा नहीं होती और उसके बिना कर्मबन्धन भी नहीं होते । यह अपवादविधान क्या अनिवार्य हैं ? यदि अधिक आहार की आवश्यकता प्रतीत हो और जिस क्षेत्र में श्रमण वर्षावास स्थित हो उसमें आवश्यक श्राहार उपलब्ध न हो तो प्रहार लाने के लिए नदी या जलप्रवाह को पार करके जा सकते हैं । किन्तु वह क्षेत्र वर्षावास के अवग्रह की सीमा में ही हो और प्रवाह का पानी अधिक गहरा न हो । २ १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से णावासंतारिमे उदए सिया से ज्जं पुण णावं जाणेज्जा -- प्रसंजते भिक्खुपडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, वाए वा णावपरिणामं कट्टु, थलातो वा णावं जलंसि श्रोगाहेज्जा, जलातो वा णावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुणं वा णावं उस्सिचेज्जा, सणं वा णावं उप्पीलावेज्जा, तहप्पगारं णावं उड्ढगामिण वा अहेगामिण वा तिरियगामिण वा परं जोयणमेराए श्रद्धजोयणमेराए वा अप्पतरे वा भुज्जतरे वा णो दुरुहेज्जा गमणाए । - श्राचा. सु. २, अ. ३, उ. १, सुत्र ४७४ २. वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निरगंथीण वा सव्वम्रो समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए । जत्थ नई निच्चोयगा निच्चसंदणा नो से कप्पइ सब्वम्रो समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खारिया गंतुं पडिणियत्तए । एरावई कुणालाए जाव चक्किया सिया एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा जाव एवं णं कप्पइ सव्वम्रो समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पीडिनियत्तए । एवं च नो चक्किया । एवं से नो कप्पइ सव्वप्रो समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए । प्रायारदसा - दसा. ८, सु. ९-११ Jain Education International For Private & Personal Use Only धम्मो दोवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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